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बेटा होने का हक़

मेरे दोस्त बाहर के देशों की ओर जा रहे,
आये दिन फोन पर उनके यूँ संदेश आ रहे,
कि:
सूरज सदा मीठी-मीठी धूप देने को तैयार,  
चाँदनी रातों में क्लब और बार की भरमार।   
किसी भी गाँव, शहर या नदिया के तट पर,
उस ज़मीं पे जहाँ चाहो बना लो अपना घर।
 
क़िस्मत खड़ी मेरे द्वार लेकर ये ढेरों उपहार, 
लेकिन छोड़के जाऊँ कैसे मैं अपना परिवार।
न्योछावर कर देंगे वो ख़ून-पसीने की कमाई,
ग़रीबी मगर कैसे सहेंगे, मेरे छोटे बहन-भाई।
 
दोस्तों ने बेच डाले पूर्वजों के खेत-खलिहान,
एजेंट की फ़ीस के लिए गिरवी रखे हैं मकान।
हज़ारों मील दूर बैठे बेटे बरसों मिल नहीं पाते,       
राह तक-तक1 माँ-बाप प्रभु को प्यारे हो जाते।
 
मुबारक हो तुम्हें दोस्तो,परदेस के क्लब व बार,
माँ-बाप से मिलने मगर आ जाना कभी-कभार।
मेरी दुआ है कि तुम पैसा ख़ूब कमाओ दिन-रात,
मेरे सामने सदा रहें बस मेरे बहन-भाई व माँ-बाप।
 
वही चाँद, सूरज व नदियाँ यहाँ भी तो हैं मिलते,
धूप हो ठिठुरती ठंड हो, हम यहाँ भी तो हैं रहते।
मुझे तो माँ अपनी के दूध का हक़ अदा करना है,   
माँ-बाप के बुढ़ापे की लाठी मुझे ही तो बनना है।
 
1. तक-तक (पंजाबी का शब्द) = देख-देख

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