दूसरा मौक़ा
कथा साहित्य | कहानी मधु शर्मा1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
साहिल और मेघा की पहली मुलाक़ात बिल्कुल किसी फ़िल्मी सीन की तरह हुई थी।
उस दिन भाग्यवश साहिल को ऑफ़िस जाने के लिए फ़ास्ट-ट्रेन मिल गयी। पिछले लगभग दो वर्षों में ऐसा कभी-कभार ही हुआ था। सीट ढूँढ़ कर उसने हमेशा की भाँति अपने सामने बैठे हुए सभी यात्रियों पर एक सरसरी सी नज़र दौड़ाई। वही मुरझाये-मुरझाये से चेहरे जो हर सुबह अपने-अपने काम पर जाने के लिए ट्रेन पकड़ते।
अचानक उसकी निगाह एक नवयुवती के चेहरे पर ऐसी गई कि वहीं अटक कर रह गई। इतनी ख़ूबसूरत लड़की उसने शायद पहले कभी नहीं देखी थी। गोल से चेहरे पर सादा सा मेकअप किए हुए और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें . . . जो उसने अपने सामने टेबल पर रखे अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर जमाई हुई थीं। साहिल चाह कर भी अपने साथ लाया हुआ समाचार-पत्र पढ़ न सका . . . उसे खोल कर पढ़ने का बस नाटक सा करने लगा।
लगभग बीस मिनट के बाद गाड़ी की गति धीमी होने लगी क्योंकि अगला स्टेशन आने वाला था . . . वही अंतिम स्टॉप भी था। आज साहिल झट से दरवाज़े की ओर बढ़ने की बजाय उस लड़की के उठने का इन्तज़ार करने लगा जो सबसे बाद में उठी। जैसे ही लड़की ने अपना फ़ोल्डर व लैपटॉप-केस एक हाथ में पकड़, अपनी सीट से बाहर निकलते हुए अपना हैंडबैग दूसरे हाथ में उठाया तो संतुलन खो बैठी। लेकिन उसके गिरने से पहले ही साहिल के दोनों मज़बूत हाथों ने उसे पीछे से थाम लिया। शर्म से लाल हुई उसने साहिल को सॉरी और थैंक्स कहते हुए क़दम बढ़ाया तो देखा उसके दायें पाँव की सैंडल की हील उखड़ गई थी।
साहिल ने आगे बढ़ कर 'मे आय?' कहकर, लड़की का उत्तर सुने बिना उसका लैपटॉप और फ़ोल्डर थाम लिये। दूसरे हाथ से सहारा देकर ट्रेन से उतरने में उसकी मदद करते हुए बोला, “आय'म साहिल . . . डौंट वरी . . . यहाँ स्टेशन की बग़ल में ही एक शू-शॉप है, चलिए आपको दिखा दूँ।”
लड़की ने सहमी व काँपती आवाज़ में कहा, “थैंक्स! आय'म मेघा . . . यहाँ पहली बार आई हूँ।” अपने ऑफ़िस का नाम बताते हुए बोली, “इस शहर में मेरी नई जॉब का आज पहला दिन है, सो आधा घंटा पहले पहुँचने का सोचा था कि ऑफ़िस और रास्ते से परिचित हो जाऊँगी . . . अगर आपको देर न हो रही हो तो प्लीज़ वो दुकान दिखा दें।”
“अरे नहीं, देर नहीं होगी। मेरा ऑफ़िस उसी के साथ है, और आपका ऑफ़िस वो रहा . . . सामने ही है,” साहिल बहुत अपनेपन से बोला।
दुकान के अन्दर पहुँच उसने मेघा का सामान एक सीट पर रखा और पॉकेट से अपना विज़िटिंग-कार्ड निकाल कर उसे देते हुए बोला, “आपको यहाँ कभी भी, किसी बात की कोई भी परेशानी हो तो मुझे फ़ोन कर दीजियेगा, बन्दा हाज़िर हो जाएगा।”
मेघा अब तक काफ़ी सम्भल चुकी थी, तो हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने आज दिन की कैसी शुरूआत हुई है। पहले ट्रेन छूटते-छूटते रह गई . . . फिर यह हील का पन्गा, ऊपर से नई जॉब का पहला दिन!”
साहिल खिलखिला कर हँसते हुए बोला, “आपने शायद सुना तो होगा कि जो कुछ भी बुरा होता है, किसी न किसी अच्छे रिज़ल्ट के लिए ही होता है। ओके दैन, बाय ऐंड गुऽऽऽड लक!”
यह कहकर वो दूकान से बाहर चला गया। मेघा ने भी जल्दी से दो-एक सैंडल्स पहन कर देखे और फिर एक जोड़ी ख़रीदकर, उसे वहीं पहन कर सामने अपने ऑफ़िस की बिल्डिंग की ओर चल दी।
उस शाम घर पहुँचते ही मेघा ने सबसे पहले साहिल का धन्यवाद करने के लिए उसे फ़ोन किया। उसके पूछने पर अपनी नई नौकरी के बारे बताने लगी। मेघा को भी साहिल अच्छा लगा क्योंकि वह बहुत मिलनसार और हँसमुख था। रात भर उसी के बारे सोच-सोच कर वह ठीक से सो भी न पाई।
उस दिन के बाद वे दोनों काम पर आते-जाते एक ही ट्रेन पकड़ते। मिलने-मिलाने का यह सिलसिला ट्रेन से शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही सप्ताह पश्चात अब या तो दोनों एक साथ लन्च करते या शाम को वापसी की ट्रेन पकड़ने से पहले स्टेशन के रैस्तरां में चाय-कॉफ़ी पीते।
एक दिन मेघा के जन्म-दिन पर एक बड़े से रैस्तरां में डिनर करते हुए साहिल ने अचानक उसके आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया। मेघा पहले तो कुछ देर चुप रही, फिर हिचकिचाते हुए बोली, “साहिल, तुम्हें मालूम तो है कि मैं तुम्हारी कास्ट की नहीं हूँ . . . और फिर मेरे पेरन्ट्स . . . मेरे पेरन्ट्स का डिवोर्स हो चुका है। तुम ही तो कई बार बता चुके हो कि तुम्हारी बिरादरी के लोग ऐसी शादी को सही नज़रों से नहीं देखते हैं।”
साहिल ने मुस्कुराते हुए मेघा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “लेकिन मैं तुम्हें यह भी बता चुका हूँ कि मेरे घरवाले मॉडर्न ख़्यालों के हैं। बाक़ी रही अनाप-शनाप बोलने वाले बिरादरी के लोगों की बात . . . तो मैंने न कभी उनकी परवाह की है और न ही कभी करूँगा।”
दोनों का चट मंगनी पट ब्याह, और वह भी बहुत धूम-धाम से हो गया। भगवान की कृपा से तीन वर्ष पश्चात मेघा ने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया। बेटी जब साल की हुई तो साहिल के कहने पर मेघा काम पर वापस जाने के लिए सहमत हो गई, और घर के समीप ही कोई पार्ट-टाइम नौकरी ढूँढ़ने लगी। दो ही सप्ताह के भीतर उसे मनपसन्द काम मिल गया, जहाँ वह केवल तीन दिन ही जाती।
एक दिन उसने अपनी चार-पाँच सहेलियों को लन्च पर बुलाया। खाना खाने के बाद चाय पीते-पीते एक सहेली बोली, “काश रीना को फ़्लू न हुआ होता तो आज उससे भी मिलना हो जाता।”
मेघा को तब कहना पड़ा, “रीना ने मुझे तुम लोगों से एक बुरी न्यूज़ शेयर करने के लिए बोला है। मैं तुम लोगों को अभी बताने ही वाली थी . . . उसने परसों अपने हज़्बन्ड के मोबाइल पर उसकी एक क्लीग और उसके बीच भेजे कुछ इन्टमेट (निजी) मैसेज पढ़ लिए . . . और वह उसी पल घर छोड़ अपने मायके चली गई। मैंने तो रीना को बहुत समझाया कि उसकी जगह अगर मैं होती तो यूँ जल्दबाज़ी में बसा-बसाया घर छोड़ने की बजाए अपने पति को दूसरा मौक़ा ज़रूर देती . . .।”
उन चारों को अपनी और हैरत भरी नज़रों से घूरते देख मेघा ने टोका, “ऐसे क्या देख रही हो? क्या एक समझदार वाइफ़ को ठंडे दिमाग़ से सोचना नहीं चाहिए कि मुझमें कब और कहाँ ऐसी कमी रह गई है कि मेरे पति को दूसरी औरत के पास जाना पड़ा?” लेकिन उसकी सहेलियाँ उसकी इस बात से सहमत न हुईं।
इस बात को बीते चन्द माह ही हुए थे कि साहिल को अपने कुछ दोस्तों के साथ एक दूसरे दोस्त की 'स्टैग-डू' मनाने एक वीकैंड के लिए ऐम्स्टर्डैम जाना पड़ा। लड़के तो लड़के होते हैं सो सभी ने जी भरकर खाने-पीने, शराब और क्लबिंग का लुत्फ़ उठाया। (यहाँ पाश्चात्य देशों में यह आम रीति है कि शादी से कुछ दिन पहले लड़के के दोस्त व उसके हमउम्र के कज़न उसे कहीं न कहीं ऐसी जगह ले जाते हैं जहाँ वह शादी के बन्धन में सदा के लिए जकड़े जाने से पहले अन्तिम बार अपनी आज़ादी का कुछ हल्का-फुल्का आनन्द उठा ले। यूरोप में ऐम्स्टर्डैम शहर इन पार्टियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। लड़कियों की भी अलग से कुछ इसी प्रकार की पार्टियाँ और धमाल-चौकड़ी होती है जिसे 'हैन-डू' कहा जाता है)
जब साहिल रविवार की शाम घर पहुँचा तो टैक्सी से उतरते हुए पूरे घर में अन्धेरा देखकर चौंक गया। चाबी निकाल दरवाज़ा खोला तो उसके पीछे एक काग़ज़ अटका हुआ मिला जिस पर मेघा की लिखाई में कुछ लिखा हुआ था।
साहिल ने सोचा, 'हे भगवान! कहीं गुड़िया को फिर से दमे का अटैक तो नहीं पड़ गया . . . और मेघा मुझे परेशान करने की बजाय ख़ुद ही उसे हॉस्पिटल ले गयी हो?' काँपते हाथों से साहिल ने वहीं खड़े-खड़े वह नोट पढ़ना शुरू किया, “साहिल, मुझे नहीं मालूम कि मुझे आधुनिक तकनीकी को कोसना चाहिए या थैन्क्स करना चाहिए। क्यों? क्योंकि तुम्हारे किसी दोस्त ने आज मुझे एक बेनाम ईमेल के ज़रिये तुम्हारा वीडियो भेजा। कल रात तुमने शराब पी रखी थी, लेकिन तुम्हें कुछ-कुछ तो याद होगा? एक विदेशी लड़की की बाँहों में बाँहें डाले जब तुम अपने होटल के कमरे की ओर जा रहे थे तो किसी दोस्त ने तुम्हें टोका भी, 'यार, भाभी और अपनी बेबी का तो सोच!’ तो तुमने नशे में झूमते हुए ऐलान किया कि 'यारो, तुम्हारा तो मुझे मालूम नहीं, मगर कुछ ही अर्सा पहले मुझे मालूम हुआ है कि मुझे अपनी बीवी की ओर से उसके साथ एक बार बेवफ़ाई करने की खुली छूट है। सो, मैं तो भई चला। अब सुबह ही मिलेंगे।’ साहिल, तुमने मेरे साथ चाहे ऐसा पहली बार किया हो। लेकिन नहीं, मैं तुम्हें 'दूसरा मौक़ा' नहीं देने वाली। तुम्हें भली-भाँति मालूम है कि मुझमें ऐसी कोई कमी नहीं जिसकी वजह से तुम्हें दूसरी औरत की बाँहों में जाने का बहाना ढूँढ़ना पड़ा। तुमने मेरे विश्वास और सादगी का जानबूझ कर पूरा फ़ायदा उठाते हुए सोचा होगा कि 'बेवकूफ़' मेघा दूसरा मौक़ा दे ही देगी तो इतने अच्छे अवसर को हाथ से काहे जाने दूँ? लेकिन अब यही 'बेवकूफ' वाइफ़ तुम्हें हमेशा के लिए गुडबाय कह रही है, और तुम्हारी बेबी प्रिन्सस भी। मैं ईश्वर से बेटी के लिए यही प्रार्थना करती हूँ (तुम्हें भी करनी चाहिए) कि जब इसका विवाह हो तो भगवान न करे इसे भी अपने जीवन-साथी के चरित्रहीन होने का मालूम होने पर अपना बसा-बसाया घर छोड़ना पड़े।”
साहिल के पाँवों तले जैसे धरती खिसक गई . . . और वह अपना सिर पकड़े वहीं दरवाज़े का सहारा लेकर बैठ गया।
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