उपद्रव
कथा साहित्य | लघुकथा मधु शर्मा15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
(यह काल्पनिक लघुकथा यथार्थ में हो रहे इंग्लैंड के मुख्य-मुख्य शहरों में जातिवाद के कारण 29 जून से आरम्भ हुए उपद्रवों से क्षुब्ध हो मुझे लिखनी पड़ी।)
“कहाँ हो यार? कब से तुम्हें फ़ोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ! और तुम हो कि . . .”
“यार फ़ोन करता भी तो कैसे। मॉम ने मेरा फ़ोन ज़ब्त कर लिया था . . . जब से तुमने मीडिया पर वह पोस्ट डाली कि इन रेसिस्ट (जातिवाद) दंगों का फ़ायदा उठा कर मॉल पर धावा बोला जाये। जिस किसी को भी महँगे-महँगे ब्रैंड का माल लूटना है तो आ जायें . . .”
“लेकिन मेरी ही बात मुझे ही क्यों बता रहे हो? मैंने तो तुमसे सिर्फ़ यही पूछना था कि कल मेरे साथ आ रहे हो न दुकानें लूटने, शहर के बड़े मॉल के कोने वाली गली में?”
“नहीं, बिलकुल भी नहीं। और तुम्हें भी यह सब अभी और इसी वक़्त रोकना होगा। मॉम ने इसी शर्त पर मेरा फ़ोन मुझे लौटाया है ताकि मैं तुम्हें नये हालात से अपडेट कर सकूँ।”
“क्या यार, अब कौन-सी क़यामत आ गई कि लूटमार में तुम्हारे जैसा हमेशा आगे रहने वाला . . .”
“तो सुनो! अभी चन्द मिनट पहले ही हमारे ही लोकल रेडियो के एक शो के दौरान हमारे ही रीलिजन (धर्म) की एक आंटी ज़ोर-शोर से धमकियाँ दे रही थीं। कह रही थीं, ‘अगर इस शहर के हमारे लड़के भी दूसरे शहरों में हुए दंगे-फ़साद की तरह फ़ायदा उठाकर जुलूस निकालेंगे या लूटमार करेंगे, तो वह भी अथॉरटिज़ (प्राधिकारियों) की मंज़ूरी से अपनी ही सैंकड़ों बड़ी-बूढ़ी औरतों को लेकर वहाँ पहुँच जायेंगी। देखते हैं ये हुल्लड़बाज़ लड़के हमारा ब्लॉकेज (नाकाबंदी) कैसे तोड़ पाते हैं! उल्टा हम ही से पिट जाएँगे’।
“ . . . अब यार ज़रा सोचो। शादी-ब्याह के कार्ड की बात तो दूर रही, हमारे मर्द लोग अपने घर की औरतों की क़ब्र तक पर उनका नाम लिखवाना बुरा समझते हैं . . . तो क्या उन्हें यूँ घर से बाहर निकल कर टीवी, न्यूज़पेपर और दूसरे मीडिया वालों के सामने इस तरह ख़ुलेआम आने देना चाहेंगे?”
अपने मित्र की बात सुनकर पहले वाले नवयुवक के मुख पर हवाइयाँ छूटती दिखाई दीं। और उसी पल उसने मीडिया पर अपनी नई पोस्ट डाली। जिसके तुरंत प्रसारित होते ही पासा ही पलट गया।
कहाँ तो उस शहर सहित आसपास के शहरों के सैंकड़ों ऊधमी नवयुवक उसी की पोस्ट की अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे थे कि उनका यह ‘लीडर’ कब निश्चित स्थान व समय शीघ्रातिशीघ्र बताये ताकि आनेवाले दिन में वे सभी पुलिस से बचते-बचाते वहाँ पहुँच कर जुलूस के बहाने लूट-मार कर पायें।
परन्तु अब . . . अब उपद्रव करने का कुविचार त्याग यह सुविचार उनपर हावी हो चुका था कि अपनी माँ-बहनों पर किसी भी प्रकार की कोई आँच न आने पाये।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- जाते-जाते यह वर्ष
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मेरी स्वाभाविकता
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं