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उपद्रव

 

(यह काल्पनिक लघुकथा यथार्थ में हो रहे इंग्लैंड के मुख्य-मुख्य शहरों में जातिवाद के कारण 29 जून से आरम्भ हुए उपद्रवों से क्षुब्ध हो मुझे लिखनी पड़ी।) 

 

“कहाँ हो यार? कब से तुम्हें फ़ोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ! और तुम हो कि . . .”

“यार फ़ोन करता भी तो कैसे। मॉम ने मेरा फ़ोन ज़ब्त कर लिया था . . . जब से तुमने मीडिया पर वह पोस्ट डाली कि इन रेसिस्ट (जातिवाद) दंगों का फ़ायदा उठा कर मॉल पर धावा बोला जाये। जिस किसी को भी महँगे-महँगे ब्रैंड का माल लूटना है तो आ जायें . . .”

“लेकिन मेरी ही बात मुझे ही क्यों बता रहे हो? मैंने तो तुमसे सिर्फ़ यही पूछना था कि कल मेरे साथ आ रहे हो न दुकानें लूटने, शहर के बड़े मॉल के कोने वाली गली में?” 

“नहीं, बिलकुल भी नहीं। और तुम्हें भी यह सब अभी और इसी वक़्त रोकना होगा। मॉम ने इसी शर्त पर मेरा फ़ोन मुझे लौटाया है ताकि मैं तुम्हें नये हालात से अपडेट कर सकूँ।”

“क्या यार, अब कौन-सी क़यामत आ गई कि लूटमार में तुम्हारे जैसा हमेशा आगे रहने वाला . . .”

“तो सुनो! अभी चन्द मिनट पहले ही हमारे ही लोकल रेडियो के एक शो के दौरान हमारे ही रीलिजन (धर्म) की एक आंटी ज़ोर-शोर से धमकियाँ दे रही थीं। कह रही थीं, ‘अगर इस शहर के हमारे लड़के भी दूसरे शहरों में हुए दंगे-फ़साद की तरह फ़ायदा उठाकर जुलूस निकालेंगे या लूटमार करेंगे, तो वह भी अथॉरटिज़ (प्राधिकारियों) की मंज़ूरी से अपनी ही सैंकड़ों बड़ी-बूढ़ी औरतों को लेकर वहाँ पहुँच जायेंगी। देखते हैं ये हुल्लड़बाज़ लड़के हमारा ब्लॉकेज (नाकाबंदी) कैसे तोड़ पाते हैं! उल्टा हम ही से पिट जाएँगे’।

“ . . . अब यार ज़रा सोचो। शादी-ब्याह के कार्ड की बात तो दूर रही, हमारे मर्द लोग अपने घर की औरतों की क़ब्र तक पर उनका नाम लिखवाना बुरा समझते हैं . . . तो क्या उन्हें यूँ घर से बाहर निकल कर टीवी, न्यूज़पेपर और दूसरे मीडिया वालों के सामने इस तरह ख़ुलेआम आने देना चाहेंगे?” 

अपने मित्र की बात सुनकर पहले वाले नवयुवक के मुख पर हवाइयाँ छूटती दिखाई दीं। और उसी पल उसने मीडिया पर अपनी नई पोस्ट डाली। जिसके तुरंत प्रसारित होते ही पासा ही पलट गया। 

कहाँ तो उस शहर सहित आसपास के शहरों के सैंकड़ों ऊधमी नवयुवक उसी की पोस्ट की अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे थे कि उनका यह ‘लीडर’ कब निश्चित स्थान व समय शीघ्रातिशीघ्र बताये ताकि आनेवाले दिन में वे सभी पुलिस से बचते-बचाते वहाँ पहुँच कर जुलूस के बहाने लूट-मार कर पायें। 

परन्तु अब . . . अब उपद्रव करने का कुविचार त्याग यह सुविचार उनपर हावी हो चुका था कि अपनी माँ-बहनों पर किसी भी प्रकार की कोई आँच न आने पाये। 

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