उसे जीने दीजिए
कथा साहित्य | लघुकथा मधु शर्मा15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आज वह न जाने कितने वर्षों पश्चात सिटी-मॉल में शॉपिंग के लिए आई थी। अवसर ही ऐसा था . . . उसका इकलौता बेटा अगले सप्ताह पाँच बरस का होने जा रहा था। उसके व स्वयं के दोस्तों के साथ मिलकर बेटे का जन्मदिन मनाने की उसमें पहली बार कुछ हिम्मत आई थी। उसके पाँव धरती पर टिक नहीं पा रहे थे। शीघ्र ही उसने शॉपिंग-लिस्ट में लिखी हुईं सब चीज़ें, उपहार व घर सजाने का सामान इत्यादि ख़रीद लिया।
जैसे ही वह मॉल से बाहर निकली तो अपनी मम्मी की पुरानी दो सहेलियों से टकरा गई। मम्मी के स्वर्गवास हो जाने के बाद आज उन दोनों को इतने बरसों के बाद मिलने पर वह ख़ुशी से फूली न समाई। उसने अभी उनका हाल-चाल पूछा ही था कि पहली महिला अपनी सहेली को सम्बोधित कर उसी के सामने बोली, “देखो न, इस बेचारी को! हमारे मोहल्ले की सबसे ज़्यादा सुन्दर और समझदार लड़की थी . . . इसीलिए भाईसाहब को इसके लिए झट से अच्छा वर और ससुराल मिल गया। लेकिन दो ही सालों में इसकी शादी टूट गई।”
“अच्छा? मुझे तो यह बात मालूम ही नहीं थी। चलो, अपना पता दो, हम तुम्हारे घर अफ़सोस करने आएँगे,” दूसरी महिला ने अपनी ऊँची आवाज़ में उससे सहानुभूति जताते हुए कहा।
चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट लाते हुए उसने उन महिलाओं को यह कह कर टाल दिया, “छोड़ें न आंटी . . . यह बात पुरानी हो गई है। आपका टेलीफ़ोन नम्बर मेरी पुरानी डायरी में है सो आपको मैं फ़ोन करके अपना एड्रैस बता दूँगी। सॉरी, अभी तो मैं जल्दी में हूँ।”
यह कह कर वो तेज़ी से कार-पार्क की ओर चल दी। लेकिन रास्ते में ही रुक गई व फूट-फूट कर रोने लगी। जिन हल्के-फुल्के पाँव से वह घर से शॉपिंग के लिए निकली थी, अब वही उसे पत्थर की तरह भारी महसूस हो रहे थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जिन घावों को भरने की वह इतनी कोशिशों में लगी हुई है, यह दुनिया उन्हें बार-बार कुरेदने से कब बाज़ आएगी?
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