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विशाल हृदयी 

 

“निम्मो, ज़रा मेरे कपड़ों की अलमारी तो ठीक कर दे। तुम्हारी बीबीजी के गुज़र जाने के बाद महीनों से किसी ने इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया!”

गुप्ता जी ने अपनी कामवाली के आते ही उसे धीमी सी आवाज़ में कहा। 

“अंकल जी, भाभी जी से कह दो न . . . मुझे क्या मालूम कि आपके कौन-कौन से कपड़े कहाँ और किस तरह से रखे जाते हैं . . .” निम्मो सदा की तरह अपनी तेज़-तकरार वाली आवाज़ में बोली। 

“अरे नहीं! बहू को कैसे कहूँ। बेचारी शाम को जॉब से थकी-हारी आती है, और फिर आते ही रोटी-पानी में लग जाती है। छुट्टी वाले दिन उसे दूसरे सैंकड़ों काम भी तो निबटाने होते हैं,” गुप्ता जी बोले। 

निम्मो ने अपनी नाक सिकोड़ते हुए कहा, “अच्छा, बरतन माँज कर आती हूँ। नहीं तो पानी चला जायेगा। आपकी अलमारी ठीक करने के बाद अगर टैम (टाइम) मिला तो बाक़ी के घर में झाड़ू ही लगा पाऊँगी, पोंछा नहीं।”

“पानी जाने की चिंता न कर। बहू-बेटा और बच्चे तो दो दिन के लिए घूमने गये हुए हैं . . . मेरे अकेले के ही कुछ झूठे बरतन हैं तो पानी की टंकी में इतना पानी तो होगा ही कि उससे तेरा काम चल जायेगा। इसलिए पहले मेरा काम कर दे . . .”

गुप्ताजी की बात बीच में ही काटते हुए कामवाली यह कहती हुई रसोई की ओर चल दी कि आप चलें, मैं झूठे बरतनों पर गर्म पानी उढ़ेल कर आती हूँ। 

पाँच-सात मिनट के बाद निम्मो जब गुप्ताजी के बैडरूम में गई तो देखा कि वह निर्वस्त्र खड़े थे। उसे देखते ही उल्टी-सीधी हरकतें व बातें करने लगे। वह झट से दूसरी ओर अलमारी के पीछे ही रुक गई। गुप्ता जी ने पहले प्यार से फिर सख़्ती से उसे आदेश दिया कि अगर वह उनकी बात नहीं मानेगी तो उस पर चोरी का आरोप लगाकर वह उसे नौकरी से निकाल देंगे। और फिर जेल से छूटने के बाद उसे कोई काम भी नहीं देगा। 

निम्मो भी अपनी उसी तेज़-तकरार वाली आवाज़ में बोली, “अंकल जी, आप क्या समझते हैं कि आपकी इन धमकियों से डरकर मैं ख़ुद को आपके हवाले कर दूँगी? मैं तो कितने दिनों से आपकी दरियादिली देख-देख . . . और आज आपकी वासना भरी आँखों को देखते ही समझ गई थी कि दाल में ज़रूर कुछ काला है। अपनी बहू के सामने मुझे कभी आंटीजी की भारी-भारी साड़ियाँ, कभी मेरे बच्चों के लिए चॉकलेट या मिठाई वग़ैरह देना . . . अनजान भाभी जी भी ज़ोर देतीं कि निम्मो, रख लो न, पापा तुम्हें इतने प्यार से दे रहे हैं। लेकिन आपके हाव-भाव से मैं आपको ताड़ गई थी . . . हम कामवालियाँ आप जैसे लोगों की रग-रग पहचानती हैं।”

और फिर निम्मो ने अपने दुप्पटे के नीचे से अपना मोबाइल निकाला। जैसे ही उसमें रिकॉर्ड की हुई गुप्ता जी को उन्हीं की बेहूदा हरकत दिखाई, तो उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वहीं पास रखी चादर लपेट कर वह बिस्तर पर धम्म से बैठ गये। अपने दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए बोले, “न न निम्मो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। तुझे अभी ही पाँच हज़ार देता हूँ . . . चल यह विडियो झट से मिटा दे!” 

“पैसे लेने होते तो आज तक आप जैसे कितने ही बाबुओं से मैं कितना पैसा ऐंठ चुकी होती, या उनके यहाँ काम छोड़ दिया होता। लेकिन कब तक काम छोड़-छोड़ कर नया ढूँढ़ती फिरती! और अंकल जी, मुझे काम से निकालने की सोचना भी नहीं, न ही मैं इस घर का काम छोड़ूँगी। क्योंकि क्या पता दूसरी नई कामवाली अगर मजबूर या डरपोक निकली तो कहीं आप की हवस का शिकार न बन जाये। ज़रा सोचिए, आप जैसों की वजह से हम हर भले मानस को भी शक की नज़रों से देखना शुरू कर देती हैं।”

कमरे से बाहर निकलते हुए रसोई की ओर जाते हुए निम्मो अपने-आप से बातें करते हुए बोली, “वो तो भला हो मोबाइल बनाने वाले का। आये दिन ऐसे-ऐसे विडियो सामने आ रहे हैं कि हम जैसे ग़रीबों के साथ इन जैसे मालिक लोग अब मनमानी नहीं कर सकेंगे।”

और इधर गुप्ता जी काँपते हाथों से कपड़े पहनते हुए पश्चाताप कर रहे थे कि विशाल-हृदयी होने का नाटक रचते हुए कभी स्वप्न में भी न सोचा था कि वह अपने पाँच पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहे थे। 

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