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करते क्यों हैं? 

 

दुश्मनों को हम घर बुलाते क्यों हैं, 
दर्द ही देंगे यह भूल जाते क्यों हैं? 
 
मतलबी लोगों से भरी यह दुनिया, 
दोस्त नए-नए फिर बनाते क्यों हैं? 
 
तकलीफ़ होगी गड़े मुर्दे उखाड़ने से, 
ज़ख़्म पुराने अपने दिखाते क्यों हैं? 
 
नाकामियों की वजह हम ख़ुद ही हैं, 
यह क़ुबूल करने से घबराते क्यों हैं? 
 
आज इसका घर तोड़ो, कल उसका, 
अपने शीशे के मगर बनवाते क्यों हैं? 

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