बेटी बचाओ
काव्य साहित्य | कविता मधु शर्मा15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
बुज़ुर्ग पिता ने जब चोला छोड़ा,
दहाड़े मार-मार तब बेटा रोया।
उसी के यहाँ आज बेटी हुई है,
यह सुनते ही वो होश में नहीं है।
चोला चाहे बच्ची का नया-नया,
मारना उसको निश्चित हो गया।
बच्ची की माँ रो-रो कर दे दुहाई,
निर्दयी की बेटी क्यों बनके आई।
तड़पती हुई पति से वह यूँ बोली,
कब तक खेलोगे ख़ून की होली?
बेटियाँ निभाती माँ-बाप का साथ,
बेटी के ख़ून से न रँगो अपने हाथ।
न मेरा, न इस मासूम का क़ुसूर है,
बेटा या बेटी होना आप पे निर्भर है।
डॉक्टर समझा रहे, पड़े न पछताना,
समझो, फिर औरों को भी समझाना।
जान लेने वाले, जान लें यह सच्चाई,
बेटी बचाने से बेटों की होगी भलाई।
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