अभिशाप
कथा साहित्य | कहानी मधु शर्मा1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
“अनुज, क्या आप मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं प्लीज़? वो . . . वो मेरी सहेली गिन्नी की शादी के लिए एक गिफ़्ट ख़रीदना है,” वेणी ने झिझकते हुए अपने पति से कहा।
“भई, छोटी-मोटी माँग पूरी करने का डिपार्टमैंट तो मम्मी का है। और अगर कुछ ज़्यादा पैसे चाहिएँ तो पापा से माँग लो,” अनुज ने अपने मोबाइल पर से आँखें हटाये बिना बड़ी लापरवाही से जवाब दिया।
वेणी चौंक गई और पूछ बैठी, “तो क्या आप का अपना कोई बैंक-अकाउंट या घर में ही आप कुछ पैसे सँभाल कर नहीं रखते?”
“नहीं यार, इसकी कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। मेरे मम्मी-पापा, ज़िंदाबाद!”
वेणी आज जीवन में पहली बार स्वयं को लाचार और हीन-भावना से ग्रस्त महसूस कर रही थी। रसोई में नाश्ता बनाने के समय नौकर का हाथ बटाते हुए अपनी इस दो महीने की नई शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे विचार करने लगी।
पिछले दो महीनों में उसे कोई ख़ास ख़रीदारी करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी . . . ससुराल या मायके में जो बच्चे हैं, केवल उनके लिए स्विट्ज़रलैंड में अपने हनीमून के समय कुछ गिफ़्ट अपने पैसों से ख़रीदे थे। उसने नौकरी भी अपने अमीर ससुराल वालों के यह कहने पर शादी से पहले ही ख़ुशी से छोड़ दी थी कि ‘घर में वे उसे किसी बात की कभी कोई कमी महसूस नहीं होने देंगे . . . तो नौकरी करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।’ वैसे भी, नौकरी तो वो टाइम-पास करने के लिए कर रही थी। उस दौरान कुछ पैसे जमा हो गये थे। लेकिन अब हनीमून के बाद उसकी हालत ठन-ठन गोपाल सी हो गई थी।
सोचते-सोचते उसे अपने पापा पर ग़ुस्सा आने लगा। वो दिन याद हो आया जब मम्मी उनके ऑफ़िस से लौटने का कितनी उत्सुकता से इंतज़ार कर रहीं थीं। वेणी को भी वह बात मालूम थी। वो भी पापा का जवाब सुनने के लिए बेचैन थी।
“आप जल्दी से फ़्रैश होकर आएँ तो आपको एक गुड न्यूज़ सुनानी है . . .” वेणी की मम्मी ने उसके पापा के घर में प्रवेश करते ही चहकते हुए कहा। फिर बरामदे में जब सभी बैठकर चाय पी रहे थे तो पापा के पूछने से पहले ही मम्मी बताने लगीं, “आपको भइया की साली मिसेज़ गोयल याद हैं न, जो पिछले हफ़्ते उस पार्टी में मिली थीं। उन्हें हमारी वेणी बहुत पसंद आ गई है . . . तो भाभी से कहकर अपने आई.ए.ऐस. बेटे के लिए हमारी बेटी का हाथ माँगा है . . .”
पापा ने बीच में टोकते हुए कहा, “नहीं, यह रिश्ता हमारी वेणी के लिए बिल्कुल सही नहीं। तुम जानती तो हो कि बड़ा बेटा होने की वजह से उसे अपने तीनों छोटे बहन-भाइयों की भी ज़िम्मेवारी सम्भालनी होगी। और . . . मैं नहीं चाहता कि जैसे मैं इतना बड़ा ऑफ़िसर होते हुए भी अपने छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेवारी पूरी करते समय अपने ख़ुद के ही दोनों बच्चों को अपने दोस्तों के बच्चों की तरह न तो अच्छे प्राइवेट स्कूलों में भेज सका . . . न ही उन्हें वो सारे सुख दे सका जो उनके साथ के बच्चों के पास उपलब्ध थे। ऊपर से मेरे वही बहन-भाई न अब हमसे मिलते-मिलाते हैं, न ही हाल-चाल पूछते हैं। तो बेटी को भी उसी चक्की में पिसने के लिए कैसे ऐसे लड़के से ब्याह दूँ . . . नहीं, यह नहीं होने दूँगा।”
उस पल वेणी को पापा का अपने लिए इतना ध्यान रखते देख बहुत अच्छा लगा। उसके उपरांत दो-एक और रिश्तों को भी उन्होंने इसी कारण मना कर दिया था। इसीलिए अनुज का घर-बाहर जानने से पहले ही उसके रिश्ते पर इसी बात पर पापा ने हामी भर दी कि वो अपने परिवार में सबसे छोटा भी है। साथ ही साथ घर व इतना बड़ा कारोबार उसके डैडी व दोनों बड़े भाई सम्भालते हैं।
लेकिन आज वेणी को यह समझने में देर न लगी कि इस घर में अनुज का सबसे छोटा होना वेणी के लिए एक अभिशाप से कम नहीं। अनुज द्वारा घर या बाहर की कोई भी ज़िम्मेवारी न उठाने के कारण उसे न तो स्वयं के अस्तित्व का एहसास था, और न ही वेणी की संवेदना या आवश्यकताओं को समझने की सूझबूझ।
साँझ होते-होते वेणी ने निर्णय कर लिया कि अनुज व अपने ससुराल वालों के साथ वो इस तरह का जीवन कदापि नहीं बिता सकेगी। रात के भोजन के बाद जब सभी डिनर टेबल से उठने ही वाले थे तो उसने अपने ससुर से उनके कारोबार के संदर्भ में एक सुझाव डरते-डरते पेश किया,
“डैडी, अनुज और मेरी . . . हम दोनों की आईटी की पढ़ाई अब काम न आई तो कब आयेगी! देखिए न, आजकल . . . सभी छोटे-मोटे बिज़नेस वाले भी कम्प्यूटर द्वारा पूरे-पूरे दिन की जाँच-पड़ताल व काग़ज़ी-कार्यवाही चंद घंटों में ही निपटा लेते हैं . . . और फिर अपने परिवार के साथ दिन का बाक़ी समय चैन से बिताने लग गये हैं . . . तो क्या आप सब भी ऐसा नहीं चाहेंगे?”
अपने ससुर की आँखों में चमक और सास के चेहरे पर आई मुस्कुराहट देखते ही वेणी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। उनसे अधिक प्रसन्नता तो वेणी को हो रही थी, क्योंकि एक अभिशाप अब वरदान में परिवर्तित जो होने जा रहा था।
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