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तहक़ीक़ात

 

यह उन दिनों की बात है जब गर्मियों में एसी जैसी सुविधाएँ भारत में कहीं भी उपलब्ध नहीं थीं। दिनभर की लू से राहत पाने के लिए रात को सितारों भरे आकाश तले, और यदा-कदा शीतल चाँदनी का भरपूर आनन्द लेते हुए, लोग अपने घरों की छत पर सोया करते थे।

सूर्यास्त होने के डेढ़-दो घन्टों के उपरान्त छत पर लगी पानी की टंकी में से बाल्टी भर-भर कर पानी छत पर छिड़क दिया जाता। और नौ-साढ़े नौ बजते-बजते वही दिन भर का भभकता स्थल तब सौंधी सी सुगन्ध सहित कुछ-कुछ ठण्डक का आभास देता। और फिर अपने-अपने बिछौनों पर वहाँ लेटे बड़े-बूढ़ों व बच्चों को झट से नींद की गोद में ले जाता। (यह अलग बात है कि कुछ-एक को तारे गिन-गिन रात काटने की आदत हुआ करती थी। और अब तो केवल वही लोग खुले आसमान के नीचे सोते हैं जिनके सिर पर छत नहीं) कूलर या बिजली के पंखों की हवा व उमस से भरे कमरे रात्रि में केवल उन बच्चों के लिए होते, जहाँ वे अपनी वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे कढ़ा परिश्रम कर रहे होते।

परन्तु कुछ दिनों से ग्यारह बजे के लगभग ऐसी गृहस्थियों वालों की ही एक गली के किशोरों के पठन-पाठन की एकाग्रता में विघ्न पड़ने लगा था। हुआ यूँ कि एक व्यक्ति ठीक उसी समय वहाँ से गुज़रता और मीठी सी तान में किसी न किसी दर्द भरे गीत की सीटी बजा रहा होता। वह कोई आम नहीं ख़ास प्रतिभा से सम्पन्न व्यक्ति लगता था, क्योंकि उसका एक भी सुर इधर का उधर न होता। धीरे-धीरे क़दमों से चलता हुआ वह गली की नुक्कड़ से मुड़ जाता, लेकिन उसकी सीटी की मधुर आवाज़ बहुत समय तक दूर-दूर तक गूँजती हुई सुनाई देती।

लड़के तो दो-एक दिन उसमें अपनी रुचि दिखा कर फिर से अपनी पढ़ाई में लग गये। परन्तु किशोर लड़कियों का हाल तो आप पूछें ही न। शाम होते ही समीप के ही पार्क में सैर करते हुए जब भी उनका आपस में मिलना-मिलाना होता तो उनकी चर्चा का एक ही विषय होता कि यह अजनबी आख़िर है कौन! इससे पहले तो दिल को छू जाने वाली ऐसी तान कभी सुनाई नहीं दी। दो-एक ने तो अपनी खिड़कियों से झाँक कर देखने की कोशिश भी की लेकिन गली की हल्की सी रोशनी में उसकी सधी हुई धीमी चाल से केवल यही अनुमान लगा पाईं कि कोई नौजवान लगता है।

किसी लड़की का मानना था कि वह अपनी प्रेमिका का ठुकराया लग रहा है, जो अपना शहर छोड़ यहीं आस-पास आन बसा है, तभी तो केवल दर्द भरे ही गीत सीटी द्वारा गाकर हल्का होता है। कुछ का कहना था कि उनका तो अब पढ़ाई में ध्यान ही नहीं लग पायेगा . . . जब तक वे मालूम न कर लेंगी कि वह है कौन, उसकी कहानी है क्या और हर रोज़ इतनी रात गये कहाँ से आ रहा होता है! उस व्यक्ति का पीछा करके कौन मालूम करे कि वह रहता कहाँ है और कहाँ से आया है! लेकिन दुविधा थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे? लड़कियाँ का इतनी रात गये उसका पीछा करना, तौबा तौबा!

एक लड़की से रहा न गया। पढ़ाई ज़रूरी या सीटी बजाने वाले उस रहस्यमयी नौजवान की जासूसी? . . . तो स्वाभाविक है उसने जासूसी करना ही उचित समझा ताकि वास्तविकता जानने के बाद वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सके। परन्तु जासूसी स्वयं करने की बजाय उसने अपने छोटे भाई को एक दिन रिश्वत देकर मनवा ही लिया कि वह उस रात अजनबी का पीछा करके केवल इतना देखकर आये कि उसका घर कहाँ है, बाक़ी की ‘तहक़ीक़ात’ वह और उसकी सहेलियाँ कर लेंगी।

नियमित समय पर जब वह अपनी सखियों से पार्क में मिलने पहुँची तो अपनी योजना का ख़ुलासा किया। उसी समय अचानक उनके बैंच के पीछे से वही सीटी की मधुर तान सुनाई दी। लेकिन कुछ दिखाई न दे रहा था क्योंकि उनके और उस आवाज़ के बीच घनी झाड़ीदार बाड़ आड़े आ रही थी। चारों-पाँचों बालाएँ लगभग दौड़ती हुईं समीप वाले गेट से निकलकर, चाल धीमी कर धड़कते दिल से वहीं पहुँचीं जहाँ से वह आवाज़ कानों में रस घोलती आ रही थी।

अररररररे यह क्या!! नहीं, यह मुमकिन नहीं! इसे तो हम बरसों से जानते हैं! अभी हाल ही में इसने अपने सिगरेट-पान का ठेला पुराने बाज़ार से हटा कर उस नई जगह पर लगाना शुरू किया था। इसीलिए आसपास के रैस्टोरन्ट लगभग ग्यारह बजे बन्द होने पर ही, वहाँ से आए ग्राहकों को निबटाकर वह अपनी ठेले को ताला लगा वहीं सुरक्षित छोड़ देता होगा। और फिर अब इस नये रास्ते से होता हुआ अपने घर की ओर जाया करता है . . . बीवी और चार बच्चों से भरे-पूरे घर की ओर।

जहाँ रहस्य खुलकर सामने आने से उन सभी का दिल हल्का हुआ, वहीं इन किशोरियों को अपनी-अपनी गढ़ी गई कहानी का ऐसा अन्त होते देख निराशा भी हुई।

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