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अपना दुःख, पराया दुःख 

 

सक्षम के पापा सरकारी विभाग में इंजीनियर हैं। उनका एक स्थान से दूसरे स्थान को जल्दी-जल्दी स्थानान्तरण होता रहता है। उनके साथ ही सक्षम की मम्मी और बहन-भाइयों को भी जल्दी-जल्दी शहर बदलने पड़ते हैं। सामान शिफ़्ट करना होता है और दूसरी जगह जाकर नये सिरे से सामान की फिर से सैटिंग करनी पड़ती है। कभी-कभी तो इस सब उठाई-धराई में उनका सामान टूट-फूट भी जाता है। 

संयोग ही कहें कि अक्सर सक्षम के पापा को नीचे का फ़्लैट मिल जाता है जिसमें किचिन-गार्डन के लिए और फूल-फुलवारी लगाने के लिए बहुत सारी जगह भी मिल जाती है। सक्षम को तरह-तरह की फूल-फुलवारी लगाने का बहुत शौक़ है साथ ही अपने किचिन-गार्डन में मौसमी साग-भाजी उगाने में भी उसे बहुत आनन्द आता है। 

इस बार उसके पापा का स्थानान्तरण मुम्बई हुआ तो उसे बहुत ख़ुशी हुई। अब वह मुम्बई का फ़िश एक्योरियम देखने जाया करेगा और गेटवे ऑफ़ इण्डिया, आर्ट गैलरी, म्यूज़ियम, ऐलीफैण्टा, एस्सलवर्ल्ड आदि सारी चीज़ें भी देखेगा जिनके बारे में उसने पुस्तकों में पढ़ा था या रवि अंकल से सुना था। एस्सलवर्ल्ड में ख़ूब आनन्द आयेगा। समुद्र के किनारे-किनारे घूमने में तो और भी आनन्द आयेगा। यह सोच-सोच कर वह ख़ूब प्रसन्न हो रहा था। 

उसकी मम्मी दो दिन से घर के सारे सामान की पैकिंग करा रही थीं और वह जल्दी से जल्दी मुम्बई पहुँँचने की ख़ुशी में अपने मित्रों को बता रहा था और साथ ही उन्हें मुम्बई आने का आमंत्रण भी दे रहा था। 

मुम्बई पहुँच कर उसे पता चला कि इस बार उसके पापा को ग्राउण्ड फ़्लोर पर रहने के लिए मकान नहीं मिला है बल्कि इस बार तो पाँचवें माले पर फ़्लैट मिला है तो उसे अच्छा नहीं लगा और वह यह सोचकर निराश हो उठा कि अब उसके प्रकृति प्रेम का क्या होगा। अब वह साग-भाजी की क्यारियाँँ कहाँँ बनायेगा? तरह-तरह के फूलों के पौधे लगाने के लिए क्यारियाँँ कहाँँ बनायेगा? अब उसके मन में रह-रह कर इसी बात की चिंता हो रही थी कि इस तरह तो वह प्रकृति से बहुत दूर हो जायेगा, उसके सारे शौक़ ही समाप्त हो जायेंगे। 

“पापा, हमें नीचे का मकान नहीं मिल सकता क्या?” उसने अपने पापा की ओर बहुत उम्मीद के साथ याचना भरी नज़र से देखा। 

“नहीं बेटे, मुम्बई में सबसे बड़ी समस्या मकान की ही आती है। मन-पसन्द मकान मिलना यहाँँ इतना आसान नहीं है फिर भी थोड़ा सैटिल होने दो। नीचे के फ़्लैट के लिए बाद में प्रयास करूँगा।” पापा का उत्तर सुनकर वह निराश हो उठा किन्तु ‘इसके लिए बाद में प्रयास करूँगा’ वाले वाक्य से सक्षम को थोड़ी तसल्ली भी हुई। 

पाँचवें माले के उस फ़्लैट में धीरे-धीरे करके सारा सामान व्यवस्थित तरीक़े से लगा दिया गया। सक्षम ने अपनी व अपनी बहन रिमझिम की पुस्तकें और पढ़ने का सारा सामान एक कमरे में व्यवस्थित तरीक़े से सैट कर लिया। इस तरह उस फ़्लैट में रहते हुए कई महीने बीत गये तो सक्षम ने अपने पापा को एक बार फिर से नीचे का फ़्लैट लेने के बारे में कोशिश करने की याद दिलाई। 

“नहीं बेटे, फ़िलहाल कई महीने तक नीचे का फ़्लैट मिलने की अभी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। सरकारी नौकरी है, सरकार जैसा निवास उपलब्ध करायेगी उसी में रहना ही पड़ेगा।”

पापाजी की बात सुनकर सक्षम उनकी मजबूरी समझ गया और चुप रह गया लेकिन साग-भाजी तथा फूल-फुलवारी के पौधे लगाने के अपने शौक़ को वह कोशिश करने के बावजूद दबाने में असमर्थ रहा। उसने धीरे से अपने पापाजी से निवेदन किया कि फिर ऐसा तो कर सकते हैं न हम कि जब तक आपको नीचे का मकान नहीं मिलता तब तक आप मुझे छोटे–बड़े कुछ मिट्टी और सीमेंट के गमले ही मँगवा दीजिए। मैं बालकनी और कमरों के बाहर गमलों को रखकर उनमें फुलवारी आदि लगा दूँगा। 

“ठीक है, तुम्हारा यह विचार बहुत अच्छा है,” पापा ने सक्षम की पीठ थपथपाते हुए कहा और कर्मचारी को भेजकर मिट्टी के तथा सीमेंट के कुछ गमले मँगवा दिए। 

सक्षम ने कुछ गमलों को बालकनी में रखा तथा कुछ को कमरों के आगे भी रखा। उसके बाद मिट्टी और गोबर की देशी खाद मँगवाई और सभी गमलों में ज़रूरत के अनुसार भर दी। 

दूसरे दिन सक्षम ने अपने पापाजी के साथ पौधशाला जाने का कार्यक्रम बनाया और वहाँँ से अपनी पसंद के कुछ सीज़नल फूलों के पौधे और कुछ सदाबहार फूलों वाले पौधे खरीदवाकर लाया। पौधों को सभी गमलों में लगाकर उसने फिर से सारे गमले लाइन से व्यवस्थित किए फिर उनमें पानी छिड़क दिया। 

दूसरे दिन सुबह को फ़्रिज में रखने वाली बोतलें और पीने के पानी वाली टंकी, नहाने के पानी की टंकी आदि भरने के बाद जब सक्षम ने पौधों में पानी लगाने के लिए पी.वी.सी. पाइप के कनैक्टर को पानी की टोंटी से जोड़ा तो यह देखकर हैरान रह गया कि पाइप में पानी तो आ ही नहीं रहा। 

“अरे, क्या इतनी जल्दी पानी की सप्लाई बन्द हो गई?” उसने बालकनी से नीचे झाँककर देखा तो पानी ऊपर न आने का सारा कारण उसकी समझ में आ गया। ग्राउण्ड फ़्लोर वाले फ़्लैट में रहने वाले अंकल एक मोटे से पाइप को हाथ में पकड़े हुए थे और बारी-बारी से सभी क्यारियों में पानी लगा रहे थे। नीचे के फ़्लैट में बहुत सी क्यारियाँँ बनी हुई थीं जिनमें बहुत सी साग-भाजी बोई हुई थी। सक्षम ने अपनी बालकनी में से ही आवाज़ लगाते हुए नीचे वाले अंकल को टोका, “अंकल आप थोड़ी देर के लिए अपनी क्यारियों में पानी लगाना बन्द कर दीजिए। आपने नीचे पानी खोल रखा है इसलिए हमारे फ़्लैट में ऊपर पानी आना बन्द हो गया है।”

सक्षम की आवाज़ सुनकर नीचे के फ़्लैट की क्यारियों में पानी लगा रहे उस आदमी ने टेढ़ी नज़र से सक्षम की ओर देखा और फिर पहले ही तरह ही पानी लगाने में व्यस्त हो गया। 

अब सक्षम अपने आप को रोक नहीं सका और वह झटपट लिफट से ग्राउण्ड फ़्लोर वाले आदमी के पास पहुँँच गया और समझाने की मुद्रा में बोला, “अंकल, आप नीचे के सारे नलों को इसी तरह खोलकर पानी क्यारियों में चलाते रहेंगे तो हमारी फुलवारी के लिए तो बिल्कुल भी पानी मिलेगा ही नहीं।”

सक्षम की बात सुनकर उस आदमी ने क्यारियों में पहले की तरह ही पानी लगाते हुए उल्टा सक्षम से ही प्रश्न किया, “फिर मैं क्या करूँ?” 

“आप थोड़ी देर के लिए अपने नल बन्द कर दीलिए तो ऊपर पानी चढ़ जायेगा और मैं अपने गमलों में लगे पौधों में पानी लगा लूँगा,” सक्षम के स्वर में याचना थी। 

“और अगर न बन्द करूँ तो . . .?” उन अंकल के बात कहने के लहजे को देखकर सक्षम सकपका गया। उसे ल्रगा कि इन अंकल कें साथ बात करना बेकार है। बेकार में ही उसने बिना सोचे-समझे इतने क़ीमती-क़ीमती पौधे ख़रीद लिए। जब पौधों को पानी ही नहीं मिलेगा तो सारे पौधे तो वैसे ही सूख जायेंगे। 

मन ही मन कुढ़ते हुए सक्षम ऊपर अपने फ़्लैट में आ गया। उसने तय कर लिया कि पापाजी के दफ़्तर से लौटते ही वह इन अंकल की शिकायत ज़रूर करेगा। और फिर वह पापा के आने का इंतज़ार करने लगा। 

दफ़्तर से लौटकर सक्षम के पापा ने हाथ-मुँह धोकर, अपने कपड़े आदि बदल लिए और मम्मी जी ने उन्हें चाय लाकर दे दी तो वह चाय की चुस्कियाँँ लेने लगे तभी सही अवसर जानकर सक्षम उनके पास आया और रुआँसा सा हो उठा, “पापाजी, ग्राउण्ड फ़्लोर के फ़्लैट में जो अंकल रहते हैं ना . . . वह बहुत गंदे हैं।”

“क्या हुआ बेटे?” सक्षम की ओर देखते हुए उसके पापा ने प्रश्न किया। 

“आज सुबह मैंने गमलों के पौधों में पानी देने के लिए जैसे ही पाइप जोड़ा कि पानी आना बन्द हो गया। मैंने समझा कि शायद नल चले गये होंगे, लेकिन जब मैंने नीचे झाँँक कर देखा तो पता चला कि नलों में तो ख़ूब पानी आ रहा है लेकिन ग्राउण्ड फ़्लोर वाले अंकल ने अपनी क्यारियों में सभी नलों को खोल रखा है अतः पानी हमारे फ़्लैट तक की ऊँँचाई तक चढ़ ही नहीं पा रहा था।”

सक्षम की सारी बात सुनकर उसके पापा जी ने कुछ सोचा और फिर बोले, “ऐसा भी तो हो सकता है कि उस समय पानी का दबाव कम रहा हो बेटे।”

पापा जी की बात सुनकर सक्षम बोल पड़ा, “वही तो मैंने अंकल से कहा था कि अंकल थोड़ी देर के लिए आप अपने नीचे के नल बन्द कर दें तो मैं अपने गमलों में पानी दे दूँँ। मैंने कल ही नये पौधे लगाये हैं।”

“फिर क्या हुआ?” सक्षम के पापा ने जिज्ञासा प्रकट की। 

“अंकल ने अपने नलों को तो बन्द किया नहीं, उल्टा मुझे ही तिरछी नज़र से घूरने लगे।”

“अच्छा! ये बात है? तो चलो, अभी चलकर पूछते हैं, उन्होंने ऐसा क्यों किया।” पापा की बात सुनकर सक्षम प्रसन्न हो गया और तुरन्त उनके साथ नीचे चलने को तैयार हो गया। 

“हाँँ-हाँँ चलिए पापा जी। पूछते हैं। नहीं तो अंकल ने कल फिर से नीचे के सभी नल खोल दिए तो हमारे तो सारे पौधे ही सूख जायेंगे।”

सक्षम अपने पापाजी को लेकर ग्राउण्ड फ़्लोर के फ़्लैट में गया तो वही अंकल कुर्सी पर बैठे-बैठे चाय की चुस्कियाँँ लेते हुए दिखाई दिए। सक्षम के पापा जी को देखते ही वह कुर्सी से उठकर खड़े हो गये। 

“आइये-आइये मिश्रा साहब, बैठिए। कैसे कष्ट किया?” उन्होंने नम्रता से कहा तो सक्षम मन ही मन चिढ़ उठा, ‘ऊँह, पापा जी के सामने ये कैसा बनावटी व्यवहार कर रहे हैं अंकल। सुबह जब मैंने थोड़ी सी देर के लिए उनसे अपना नल बन्द करने के लिए कहा था तो कैसी तिरछी नज़रों से देखा था मुझे जैसे खा जायेंगे और अब पापा जी को देखकर कितने सज्जन बने हुए हैं जैसे इनसे भला आदमी कोई दूसरा है ही नहीं।’

“कष्ट क्या किया, दरअसल बात यह है कि अपने सक्षम को फूल-फुलवारी लगाने का बहुत शौक़ है,” सक्षम के पापा ने उन्हें समझाया। 

“यह तो बहुत अच्छी बात है। प्रकृति से तो प्रेम करना ही चाहिए।” सक्षम की ओर देखते हुए अंकल बोले तो सक्षम मन ही मन फिर कुढ़ गया। उसे अंकल के बनावटी व्यवहार पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था। हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और। उसने सोचा और बोल पड़ा, “लेकिन अंकल, जब पौधों को पानी ही नहीं मिलेगा तो फिर फूल क्या सूखे पौधों पर आयेंगे?”

“हाँँ, यह बात तो है बेटे। पौधों को पानी तो चाहिए ही, नहीं तो पौधे सूख जायेंगे।” उन्होंने ऐसे अनजान बनते हुए कहा जैसे सुबह को कुछ भी हुआ ही न हो। 

‘हे भगवान! कैसे भोले बन रहे हैं अंकल इस समय।’ सक्षम ने मन ही मन सोचा फिर जब उससे रहा नहीं गया तो वह बोल पड़ा, “तो फिर अंकल, आपने सुबह मेरी प्रार्थना पर थोड़ी देर के लिए अपने नल बन्द क्यों नहीं किए थे? नीचे के सारे नल खोल देने से, ऊपर तो पानी पहुँँचता ही नहीं। फिर फुलवारी को तो सूखना ही है।”

“क्या कह रहे हो बेटे? नीचे के नल खोल देने से ऊपर वालों पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा?” 

अंकल ने अपना तर्क दिया तो सक्षम तिलमिला उठा, “फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ेगा अंकल? नीचे के सारे नल खोल देने से ऊपर एक बूँद भी पानी नहीं चढ़ता।” 

सक्षम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा तो अंकल मुस्कुरा दिए, “ये तुम्हें किसने बहका दिया है सक्षम?” 

“मुझे किसी ने नहीं बहकाया अंकल, बल्कि यह तो सौ फ़ीसदी सही बात है कि नीचे के सारे नल खोल देने पर ऊपर की मंज़िल पर रहने वालों को पानी की परेशानी होती है,” सक्षम ने भी पूरे ज़ोर से अपना तर्क प्रस्तुत किया। 

“अच्छा, तुम कहते हो तो यह भी मान लेता हूँँ वैसे तुम्हारे कहने पर ही मैं यह मानने के लिए तैयार हुआ हूँँ कि नीचे के नल खोल देने से ऊपर के फ़्लैट्स में पानी चढ़ने में कोई परेशानी नहीं होती है।”

“मेरे कहने पर! . . . मैंने ऐसा कब कहा अंकल?” सक्षम आश्चर्य से चौक उठा। 

“याद करो बेटे, एक साल पहले जब तुम्हारे पापा भोपाल में थे और तुम नीचे के फ़्लैट में रहते थे। तीसरी मंज़िल पर रहने वालों से इसी बात पर तुम्हारी कहा-सुनी हुई थी और तुमने कहा था कि . . .” बात को अधूरी छोड़कर वह चुप हो गये तो सक्षम सोच में पड़ गया। 

“लेकिन अंकल, आपको भोपाल की यह बात कैसे पता चली?” सक्षम का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था। 

“मैं उस दिन वहीं पर था। अपने एक मित्र से मिलने भोपाल गया हुआ था। मैं तो उस बात को भूल ही चुका था किन्तु जब मैंने तुम्हें यहाँँ देखा तो चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा। मैंने याद करने की कोशिश की कि तुम्हें कहाँँ देखा है तो मुझे सब कुछ याद आ गया। तुम्हारा वह झगड़ा भी याद आ गया जब तुमने तीसरी मंज़िल पर रहने वालों को तर्क दिया था कि नीचे के सारे नल एक साथ खोल देने पर भी ऊपर के फ़्लैट्स में पानी पहुँँचने में कोई परेशानी नहीं होती। लेकिन आज तुम एकदम उल्टा कैसे बोल रहे हो? अब क्या पानी ने नियम बदल लिया है?” 

अंकल की बातें सुनकर सक्षम को एक साल पहले की भोपाल वाली वह घटना याद आ गई। आज उसे महसूस हुआ कि उस दिन वह ग़लती पर था। अपने स्वार्थवश दूसरों की परेशानियों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। 

“अंकल आप ठीक कह रहे हैं। मैं उस दिन की बात पर शर्मिंदा हूँँ। मुझे तीसरी मंज़िल पर रहने वालों से बहस करने की बजाय उनकी परेशानी समझनी चाहिए थी। मुझे क्षमा कर दो अंकल,” कहकर सक्षम रुआँसा हो उठा। 

“अरे नहीं बेटे, रोने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हें अपने अलावा दूसरों की भी परेशानी का अहसास हो, यही हम चाहते थे। हम, यानी मैं और तुम्हारे पापा भी। हम दोनों की ही यह योजना थी। समझे?” 

“क्या! पापाजी भी आपके साथ शामिल थें?” सक्षम आश्चर्य से चौक उठा। 

“हाँँ बेटे, आदमी को दूसरों की परेशानी का अहसास तभी होता है जब वह स्वयं भी उस परिस्थिति से गुज़रे। अब तुम्हें मालूम पड़ गया होगा कि ऊपर के फ़्लैट्स में रहने वालों को कौन-कौन सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि भोपाल में नीचे के फ़्लैट में रहते हुए तुम्हें इस बात का अहसास ही नहीं था।”

“आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं पापा जी। पानी की ही समस्या नहीं, अब तो और भी कई समस्याओं के बारे में समझ गया हूँँ मैं, जिनका सामना ऊपर की मंज़िलों पर रहने वालों को करना पड़ता है। आपने और अंकल ने मिलकर मेरी आँखें खोल दीं, धन्यवाद पापा जी, धन्यवाद अंकल। 

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