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आत्मबल का कमाल

अल्पिका एक छोटे से पहाड़ी गाँव के साधारण किसान के घर में जन्मी अनुपम बेटी थी। तीन भाइयों अनुज, मनुज, तनुज की सबसे छोटी, प्यारी बहन। रूप, रंग में साधारण पर बुद्धि में असाधारण। साँवले वर्ण की उस कन्या की तेज से परिपूर्ण बड़ी-बड़ी आँखें सबको सम्मोहित कर लेती थीं। वह धीर, गम्भीर बालिका थी। बचपन से ही जब भी वह बोलती तो उसकी मधुर वाणी से निकले शब्दों को सुनकर सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था। इसीलिये उसकी दादी उसे अल्पिका न कहकर मोहिनी कहती थीं। एक बात अल्पिका में और थी कि वह किसी से डरती नहीं थी। जब वह तीन साल की थी तब एक बार एक नेवले को साँप पर झपटते देख कर वह तेज़ी से वहाँ जा पहुँची और नेवले को पकड़ लिया। साँप भी फन फैलाये डसने को तैयार बैठा था पर मुड़ कर चला गया। देखने वालों का यह दृश्य देख कर दिल दहल गया था। उसके साहस को देख कर उसके बाबा कहते कि मेरे घर साक्षात्‌ दुर्गा देवी आ गई हैं। 

अल्पिका के परिवार का व्यवसाय कृषि था। पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र होने के कारण वहाँ सिंचाई के लिये नहर आदि न थीं। फ़सल के लिये प्रमुखतः वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता था। एक बार वर्षा न होने से गाँव में हाहाकार मच गया। लोग इकट्ठे होकर सरकार के विरुद्ध आंदोलन करने लगे। लोगों को घर छोड़कर मज़दूरी करने बाहर जाना पड़ा। स्त्रियाँ व बच्चे घर पर रह गये और पुरुष नौकरी की तलाश में शहर चले गये। अल्पिका के पापा और बाबा भी शहर जाने का विचार करने लगे। 

अल्पिका अभी सात साल की बच्ची थी पर उसने इस समस्या के विषय में गम्भीरता से सोचना शुरू किया। अपने भाइयों के साथ खेलते हुए वह पहाड़ी के आस-पास घूमती रहती थी। उसने देखा था कि सोतों से पानी बहते हुए गड्ढे में इकट्ठा होता है और ज़्यादा हो जाने पर पहाड़ी से नीचे बहता रहता है। उसने अपने बड़े भाई तनुज से कहा, “भैया! देखो इतना पानी गड्ढे से निकलकर बाहर बहा जा रहा है। अगर हम इस पानी को खेतों की तरफ़ ले जायें तो पापा, बाबा को मज़दूरी करने शहर नहीं जाना पड़ेगा। अपने खेत की फ़सल भी नहीं सूखेगी।” 

“तुम्हारी बात तो सही है पर पानी खेत तक ले कैसे जायेंगे?” छोटा अनुज बोला। 

अल्पिका सोचते हुए बोली, “इस गड्ढे का सामने का हिस्सा अगर हम रोक लगा कर बंद कर दें तो पानी बह कर नीचे नहीं जायेगा और ऊपर बहेगा। आगे अगर नाली बना लें तो क्या हम पानी अपने खेत तक नहीं ले जा सकते?” अल्पिका ने भाई की ओर देखा। तीनों भाई बहिन की बात से सहमत थे। 

तनुज बारह वर्ष का ही था पर शरीर से बलिष्ठ और बुद्धिमान था। उसने अपनी बात अपने बड़ों से की पर उन्होंने बच्चों की बात को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया। अल्पिका के समझाने पर तीनों भाई तैयार हो गये कि हम लोग स्वयं पानी खेतों तक लाने की कोशिश करते हैं। 

अल्पिका अपनी दादी को लेकर उस स्थान तक गई और पूरी योजना समझाई। दादी को विश्वास तो नहीं था कि सफलता मिलेगी पर सोचा कि बच्चों का खेल ही सही इनको करने देते हैं। फ़सल तो सूख ही रही है यदि पानी खेत तक लाने में बच्चों को क़ामयाबी मिल गई तो बहुत अच्छा और नहीं तो समझूँगी कि बच्चे खेल रहे थे। 

दादी ने तनुज को अपनी जमा-पूँजी से निकालकर रुपये दिये कि तुम्हें ईंट, गारा, सीमेंट आदि जो सामान चाहिये ख़रीद लाओ। तनुज ने रहीम चाचा को घर बनाते देखा था। उनका बेटा शफ़ीक़ तनुज का सहपाठी एवं मित्र था। तनुज और शफ़ीक़ ने अपने दोस्तों को भी इस योजना में शामिल किया। सब बच्चों ने गर्मी की छुट्टियों में खेलने की जगह श्रमदान करके सोतों से लेकर खेतों तक नाली बनाने का कार्य प्रारम्भ किया। रहीम चाचा ने सोते के गड्ढे का मुँह बंद करने में सहायता की कि पानी का नीचे बहने का काम रुक गया। उन्होंने पानी को आगे ले जाने के लिये बच्चों को समझा दिया कि कैसे नाली बनाने का कार्य करें। जो बच्चे श्रमदान कर रहे थे सबने यह तय किया था कि पहले जिसके खेत पड़ेंगे उसके लिये नाली बनाते हुए आगे बढ़ेंगे। अगर किसी के खेत तक पानी न पहुँच पाया तो दूसरा सोता देखकर वहाँ से पानी पहुँचायेंगे। योजना बहुत बड़ी थी और धन की समस्या थी। बच्चों ने मिलकर इस समस्या का यह हल निकाला कि सब बच्चे अपनी-अपनी गुल्लक में जमा रुपये इसी काम के लिये ख़र्च करेंगे। इसके अतिरिक्त उनको जो जेब ख़र्च मिलेगा वह भी इसी काम में लाया जायेगा। बच्चों की लगन और आत्मविश्वास के कारण उन्हें नाली बनाकर खेतों में पानी ले जाने में सफलता मिलने लगी। 

बच्चों के कार्यों से उत्साहित होकर उनके बड़े भी इस योजना को पूर्ण करने में सम्मिलित हो गये। आज वह ग्राम अपनी लहलहाती फ़सलों की सिंचाई के लिये किसी की दया पर निर्भर नहीं है। स्कूल खुलने पर प्रधान अध्यापक ने तनुज को बुलाकर शाबाशी दी। उन्होंने कहा, “तनुज मुझे तुमपर एवं उन सब बच्चों पर गर्व है जिन्होंने इस गाँव की सबसे भयंकर समस्या का समाधान कर दिया। कितने वर्षों से गाँव के लोग सरकार के पास नहर बनवाने की दरख़ास्त दे रहे थे पर निराश होना पड़ता था। हर सरकार वादा करती पर रहता वही ढाक के तीन पात। किसी विधायक या सांसद ने नहीं ध्यान दिया। आज तनुज ने हमें सिखा दिया कि हम चाहें तो अपनी कुछ समस्याओं के निराकरण स्वयं कर सकते हैं। सरकार पर निर्भर रहकर या दूसरों को दोष देते रहने से कोई हल नहीं निकलता।” 

जब तनुज ने बताया कि यह योजना उसकी छोटी बहिन अल्पिका ने सुझाई थी तो सब बहुत प्रसन्न हुए। अल्पिका को बुलाकर सबके सामने माला पहनाई गई और प्रधान अध्यापक ने कहा, “बच्चों आयु से कोई अंतर नहीं पड़ता है। छोटे-से-छोटा बच्चा भी बड़े-बड़े काम कर सकता है। हम सबको इससे सीख लेना चाहिये। अपने परिवार की, समाज की, देश की कोई भी समस्या हो उसे हल करने में छोटे बच्चे भी सहायक हो सकते हैं। अपने आत्मविश्वास और आत्मबल से हम हर कठिनाई पर सफलता प्राप्त कर सकते हैं।” 

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