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कॉम्पटिशन

 

अनुषा और मानसी एक ही स्कूल की एक ही कक्षा में पढ़ती थीं। दोनों के घर समीप होने के कारण दोनों में दोस्ती भी गहरी थी। लेकिन इन सहेलियों में हमेशा यही कॉम्पटिशन रहता कि हर इग्ज़ैम में कौन पहले नम्बर पर आएगा। उनके पेरन्ट्स सहित अध्यापकों को भी उनकी इस प्रतियोगिता पर कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि इस प्रकार वे दोनों इधर-उधर की फ़ालतू बातों में समय नष्ट करने की बजाय खेल के साथ-साथ सदा पढ़ाई में ही अपना ध्यान लगाये रखतीं। 

एक दिन अनुषा बहुत रुआँसी हो मानसी के घर आई और कहने लगी कि उसकी हिस्ट्री की होमवर्क की नोटबुक कहीं खो गई है। अगर मानसी को एतराज़ न हो तो क्या वो उसे अपनी नोटबुक दे सकती है। दो-तीन दिनों में अब तक का पूरा होमवर्क कॉपी करके वो उसे वापस कर देगी। मानसी ने कोई आपत्ति न जताई। 

लेकिन अगले ही दिन अनुषा शर्मिंदा होते हुए मानसी से बोली, “तुम्हारी नोटबुक . . . वो भी आज स्कूल में ही न जाने कहाँ गुम हो गई है। क्योंकि मैंने सोचा था कि किसी भी ख़ाली समय में यहीं स्कूल में ही दो दिन में ही सारा होमवर्क कॉपी करके यह सिरदर्दी निपटा लूँगी, लेकिन किसी ने जैसे मेरी वाली चोरी की थी, लगता है उसी ने तुम्हारी भी कर ली है।” 

टीचर ने भी सभी की तलाशी ली, लेकिन कुछ नहीं मिला। हिस्ट्री के विषय में मानसी कुछ कमज़ोर थी . . . उसे तो कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वार्षिक परीक्षाएँ सिर पर हैं, और वह तो होमवर्क पर ही भरोसा किए बैठी थी। थक-हार कर उसने एक दूसरी छात्रा से पूरे साल के होमवर्क में मिले प्रश्न नोट कर लिए। और फिर हिस्ट्री की पुस्तक व पूरे साल टीचर द्वार दिए गये हर लैसन के दौरान जो-जो मोटे-मोटे पॉइन्ट्स उसने अपनी रफ़ नोटबुक में नोट कर रखे थे, दिन-रात एक कर मानसी ने नयी नोटबुक तैयार कर ली। 

जैसा कि आमतौर पर होता है कि सभी छात्र परिक्षाओं के समीप आने पर पढ़ाई में इतने व्यस्त हो जाते हैं कब परीक्षाएँ आईं और कब समाप्त हुईं, मालूम ही नहीं चला। अब तो रिज़ल्ट का नाम सुनते ही सदा की भाँति अनुषा व मानसी का दिल धड़कते लग जाता। और फिर वह दिन भी आया जब स्कूल में दोनों ने सभी के सामने अपनी-अपनी इग्ज़ैम-रिपोर्टबुक खोल कर देखीं। मानसी इस बार अनुषा से कहीं ज़्यादा अंक लेकर फ़र्स्ट आई थी। अनुषा तो तीसरे नम्बर पर आई थी। और तो और हिस्ट्री में मानसी के अंक सभी की उम्मीद से कहीं अधिक आये थे। 

मानसी ने दौड़ कर अनुषा को गले लगाते हुए कहा, “मैं तुम्हारा थैंक्स करना चाहती हूँ कि अगर तुमसे मेरी होमवर्क की नोटबुक खो न गई होती तो आज मैंने हिस्ट्री में इतने अच्छे मार्क्स न लिए होते।”

अनुषा को आश्चर्य से भरी अपनी ओर ताकते देख मानसी बोली, “देखो न! इग्ज़ैम के इतने नज़दीक आने पर चाहे दिन-रात एक करके मुझे वो सारा होमवर्क दुबारा करना पड़ा . . . लेकिन जिस हिस्ट्री सब्जैक्ट से मैं डरती थी, इसी बहाने उसके पूरे कोर्स का रिवीज़न साथ-साथ होता चला गया।”

यह सुनकर अनुषा के तो जैसे पाँवों तले ज़मीन खिसक गई। लेकिन अब वो उस पल को वापस भी नहीं ला सकती थी . . . जब उसने मानसी की नोटबुक अपने ही पास छुपा कर रख ली थी, और चोरी हो जाने का बहाना बना दिया था। 

आज शायद वो ही फ़र्स्ट आई होती, अगर उसकी कॉम्पटिशन की भावना ने ईर्ष्या का स्थान न लिया होता। 

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