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सादा जीवन: गुण या अवगुण 

 

“मौसी प्लीज़, यह अपना मोबाइल लेकर हमारे दोस्तों के सामने तो बिल्कुल ही न आइएगा। मैंने आपको सुबह बताया था न कि वे दोपहर को किसी भी समय आपसे मिलने आने वाले हैं . . . दो-एक और भी आ रहे हैं जो यहाँ इंडिया से अमेरिका जाकर पढ़ना चाहते हैं। शायद उस बारे कुछ बातें पूछना चाहते हैं।”

“क्यों भई भाँजे साहब! क्या वे इस मोबाइल को मुझसे माँग लेंगे या फिर . . .?” 

शीतल ने बीस वर्षीय लव की वाणी में अपनी खिल्ली उड़ती-सी महसूस होते देख, हँसते हुए पूछा। 

“नहीं मौसी, यह . . . यह इतने पुराने मॉडल को देखकर कहीं दूसरे दोस्तों के बीच वो हमारा मज़ाक़ न उड़ाएँ,” लव के जुड़वाँ भाई कुश ने हिचकिचाते हुए कहा। 

शालिनी ने अपनी बहन की ओर प्रश्न भरी दृष्टि दौड़ाई। बहन भी जैसे पहले से ही कुछ कहने के लिए तैयार बैठी थी, “हाँ दीदी, बच्चे तो बच्चे यहाँ तो हमारी काम वाली भी आज सुबह आपको पहली दफ़ा देखकर कह रही थी कि लगता ही नहीं कि आपकी दीदी विदेश में रहती है। कपड़े कितने सादे पहने हुए और न ही कोई मेकअप वग़ैरह। इसलिए दीदी प्लीज़, यह सलवार-क़मीज़ बदल कर कोई ड्रैस या स्कर्ट पहन लें। और आप मेकअप नहीं करतीं तो कोई बात नहीं, मेरा वाला इस्तेमाल कर लें। ऐसा है कि शाम के समय सैर करते हुए सोसायटी के कोई जान-पहचान वाले मिलने न आ जायें कहीं . . . बुरा मत मानिए दीदी, वो मशहूर कहावत है न कि ‘खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता’।” 

यह सुनकर शीतल का मुख मुरझा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सादा जीवन-शैली को अपनाने वाले उसके परिचित अमेरिकन सही हैं या इसे अनुचित कहने वाले उसके भारतवासी परिवार के सदस्य। सादगी अपनाना वहाँ गुण माना गया है तो यहाँ भारत में अवगुण क्यों! 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2025/01/15 01:06 PM

वाह वाह वाह, प्यादे से फर्जी भयो टेडो टेडो जाए को चरितार्थ करती सुंदर लघु कथा

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