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मेरी मातृ-भूमि

पूजा के कमरे में, सामने मेरे सदैव जो रहता है, 
वह तिरंगा मुझे मेरी मातृ-भूमि से जोड़े रखता है। 
 
उसे प्रणाम कर सोच का एक दरिया जो बहता है, 
सोचा आपसे साझी कर लूँ मेरी जो मनोव्यथा है। 
 
जन्म-भूमि मेरी चाहे मुझसे हज़ारों मील दूर सही, 
उससे मैं दूर कहाँ, रोम-रोम मेरा मुझसे कहता है। 
 
यहाँ रहूँ या मैं जा बसूँ धरती के किसी भी कोने में, 
मेरा भारत महान लेकिन मेरे ही भीतर तो बसता है। 
 
याद कर उसे यदि आँखों से अश्रु बह भी निकलें तो, 
हर वो आँसू पावन गंगाजल की बूँद जैसा लगता है। 
 
विमान-यात्रा से थकी-हारी जब भारत पहुँचती हूँ तो, 
मातृ-भूमि की महक से तन-मन तुरंत खिल उठता है।

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