प्रेम का धागा
कथा साहित्य | लघुकथा मधु शर्मा1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
अपने बड़े भाई को घर में आते देख शिवानी गैस्ट-रूम से निकल कर उनके सामने जा खड़ी हुई और चिल्लाती हुई बोली, “भइया, मेरी कल की वापसी का टिकट करवा दें . . . मैं अपने ससुराल दिल्ली में ही भली!” भइया ने शांत स्वर में कहा, “अरे, अब क्या हो गया हमारी गुड़िया को? चलो, पहले लंच कर लूँ, शाम को ऑफ़िस से आकर फिर आराम से बात करूँगा। उस वक़्त जैसा कहोगी, वैसा ही होगा। आई प्रॉमिस!”
शिवानी की बड़ी बहन वाणी और उसकी मम्मी सकते में आ गईं कि उसे यह अचानक क्या हो गया है? बहु को रसोई में नौकर की मदद करते देख मिसेज़ गुप्ता ने बड़े प्यार से शिवानी का हाथ पकड़ अपने पास बिठाया और नाराज़गी का कारण पूछा। शिवानी ने उनका हाथ झटकते हुए बेरुख़ी से कहा, “मम्मी, अब आप इतनी नादान भी न बनिएगा। अरे, दो दिन से सहन कर रही हूँ कि कैसे आप सभी वाणी दीदी और उनके तीनों बच्चों के आगे-पीछे घूम रहे हैं। अगर उनके बच्चे लंदन से पहली बार आये हैं तो मेरा बेटा लव भी तो पहली बार यहाँ आया है! मगर आप लोगों को इनसे फ़ुर्सत मिले, तभी न!”
मिसेज़ गुप्ता शिवानी की पीठ सहलाती हुईं बोलीं, “पगली, वाणी के बच्चे तुम्हारे आठ महीने के लव को नहलाने-धुलाने, उसे तैयार कर बोतल से दूध पिलाने से लेकर उसे सुलाने तक का काम दौड़-दौड़ कर रहे हैं . . . हमें वे मौक़ा ही कहाँ दे रहे हैं? फिर वाणी वहाँ लंदन में अकेले घर-बाहर का काम, तीन-तीन बच्चों की देखभाल, ऊपर से सारा दिन नौकरी करती है। हम उसे इतना भी आराम न दे पाये तो उसका मायके आने का क्या फ़ायदा हुआ? तुम्हें तो मालूम ही है यह सिर्फ़ पाँच दिन के लिए हमारे पास आई है . . . बाक़ी के दो हफ़्ते अपने ससुराल वालों के साथ बॉम्बे में बितायेगी। तुम तो हमारे पास अभी एक महीना ठहरोगी।” किसी तरह से बहला-फ़ुसला कर मिसेज़ गुप्ता शिवानी को शांत करने में सफल हो गईं।
इतने में उसके भइया व भाभी खाना खाकर वहीं बैठक में आ गए। वाणी यह सब चुपचाप देख और सुन रही थी लेकिन अंदर ही अंदर काँप कर रह गई कि . . . “क्या यह वही मेरी छोटी प्यारी बहन है जो सप्ताह में कम से कम दो बार मेरा फ़ोन न आने पर उदास हो जाती थी। और जिससे बारह साल के बाद मिलने का मुझे चाव मम्मी-पापा, भइया-भाभी से मिलने से कहीं दस गुना ज़्यादा था।” और तभी उसके अंदर ही अंदर कुछ बड़ी ज़ोर से टूटा जिसकी आवाज़ केवल वही सुन पाई।
उस घटना को बीते तीन बरस हो गए हैं। वाणी अपनी बहन का हाल-चाल जानने के लिए अभी भी फ़ोन करती है, लेकिन सप्ताह में दो बार की बजाए अब महीने में केवल दो-एक बार ही। चाहकर भी वाणी अपनी बहन के प्रति फिर से वही अपनापन महसूस नहीं कर पा रही। बस यही सोचकर उदास हो जाती है कि रहीम जी ने सच ही कहा था:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय,
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं