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क्षमा

 

आये दिन हमारे घर-गृहस्थियों, काम-काज, विद्यालयों इत्यादि से लेकर समाज तक में ऐसी-ऐसी चिंताएँ उभर कर सामने आ जाती हैं, जिन पर यदि चिंतन न किया गया तो शीघ्र ही वे कैंसर रूपी कीड़ा बनकर हमारे भीतर घर कर जायेंगी या नासूर बन इंसानियत को मिटा डालेंगी।

 

क्षमा

कमल को अपनी ननद का फ़ोन आया कि शीघ्र हस्पताल पहुँचो। डाक्टर ने जवाब दे दिया है और मम्मी तुमसे अभी मिलना चाहती हैं।

रास्ते भर कमल सोचती रही कि अब और कौनसा दोष बाक़ी रह गया, जो बीजी बरसों पहले घर से निकाल कर आज मुझे याद कर रही हैं? परन्तु उनसे मिलते ही उसकी आशंका आश्चर्य में परिवर्तित हो गई। उसकी सास उसे देखते ही अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहने लगीं, "मैंने तुम्हारे साथ सही नहीं किया। पहले अपने बेटे को, फिर सभी रिश्तेदारों को तुम्हारे चरित्र के बारे उल्टा-सीधा बोल तुम्हारे ख़िलाफ़ कर दिया। अब यह मुँह लेकर परमात्मा के सामने कैसे जा पाऊँगी . . . हाँ, अगर तुम माफ़ कर दो तो . . ."

कमल कुछ न कह सकी और वहाँ रुके बिना रोती हुई कार में जा बैठी। पिछले दस वर्षों की आपबीती उसकी आँखों के आगे से चंद ही पलों में एक चलचित्र समान आई व चली गई। सोचने लगी कि "बीजी को आज माफ़ी माँगनी इसलिए याद आ गई जब उनके जाने का समय आ गया? लेकिन मेरा तो सब ख़त्म हो चुका है! पति ने मुझे छोड़कर दूसरी शादी कर ली, दिमाग़ी बीमारी और चरित्रहीन का दोष थोपकर दो साल का मेरा बेटा मुझसे छीन लिया गया। मेरे क्षमा कर देने से बीजी तो हल्की हो जाएँगी . . . मगर क्या मेरी उजड़ी ज़िंदगी फिर से बस जायेगी?"

कमल अपनी कार में बैठी-बैठी समाज से प्रश्न करना चाहती थी कि "क्या मैं वापिस जाकर उन्हें कह दूँ कि 'माफ़ किया' क्योंकि क्षमा माँगने वाले से बड़ा क्षमा कर देने वाला होता है . . . या कार वापस घुमा कर घर चली जाऊँ?"

चिंतन: कुछ लोग यूँ ही अन्याय द्वारा पहले तो दूसरों का जीवन बरबाद कर देते हैं। फिर अपना अंतिम समय समीप आने पर उन सभी से क्षमा माँग कर जाते-जाते अपने मन का बोझ हल्का कैसे कर लेते हैं?

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