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16 का अंक

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों में, 
16 शृंगार घरों से निकल बिकने लगे दुकानों में। 
 
16 तक के पहाड़े हमने-आपने रटे जो दिन-रात, 
गणित में इसीलिए माहिर हैं, 16 आने सच बात। 
 
पहली कक्षा से एम.ए. तक जब बिताये 16 साल, 
16 से 21 की उम्र के बीच ही सफ़ेद हो गये बाल। 
 
16 मंज़िला बिल्डिंग चढ़ जाते थे कभी एक साँस, 
16 सीढ़ियाँ देखते ही अब सूँघ जाता है हमें साँप। 
 
16 नीचे के 16 ऊपर के जो थे पंक्तिबद्ध 32 दाँत, 
16 बचे-खुचों से अब चबा पाते केवल दाल-भात। 
 
घर में सभी को मिलाकर 16 का है परिवार हमारा, 
16-16 घंटे काम करने के बाद भी हुआ न गुज़ारा, 
 
जिसने पैदा किया वही पालेगा भी कृपालु भगवान, 
2016 से नौकरी त्याग अब सोये रहते चादर तान। 
 
क्रिसमस आने में अभी तो बचे होते हैं पूरे 16 हफ़्ते, 
बाज़ार सजे देख के हम वहीं रह जाएँ हक्के-बक्के। 
 
बेटा बेरोज़गार है और आवारागर्दी करे सुबह-शाम, 
टोकने पे है डाँटता, आप तो हैं 16वीं सदी के इंसान। 
 
आने वाली पीढ़ियों का दोस्तो, यदि चाहते हैं भला, 
तो चलिए 16 संस्कारों की फिर से सीखते हैं कला। 

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टिप्पणियाँ

डाॅ. लता सुमंत 2023/09/26 09:12 AM

सोलह आने सही बात। कविता बहुत अच्छी लगी।

Sarojini Pandey 2022/08/10 11:13 AM

आनन्द आगया कविता पढ़ कर , मानो चन्द्रमा जैसी सोलह कलाओं से युक्त

shaily 2022/06/16 10:21 AM

16 आने आनंद देती कविता.

Ritu Khare 2022/05/17 01:23 AM

बड़ी रोचक कविता है!

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