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स्वप्न-पिटारी

 

 (भूमिका: यूऐन की एक एजेंसी आईओऐम (The International Organization for Migration) का अनुमान है कि वर्ष 2024 में ब्रिटेन पहुँचने के लिए इंग्लिश चैनल पार करते हुए कम से कम 78 अवैध प्रवासियों की मृत्यु हुई। 2018 से अब तक का यह सबसे घातक वर्ष माना गया है) 

 

अपने-अपने मन की अटारी थी, 
रखी हुई जहाँ स्वप्न-पिटारी थी। 
सपने न सिर्फ़ दो-एक अभागों के, 
सँजोए हुए अठहत्तर परिवारों के। 
 
कुछ थे राह तकती माँओं के, 
उम्मीद पर जी रहे पिताओं के। 
छोटे भाइयों के सुनहरे सपने, 
मुट्ठी में अपनी समेटे थीं बहनें। 
 
दादा का वह बड़ा सा मकान, 
पूर्वजों के सभी खेत-खलिहान, 
गिरवी उनसे सब रखवाये गये, 
बेटे यूँ परदेस भिजवाये गये। 
 
रोते-रोते पत्नी ने विदा किया, 
शीघ्र मिलन का वादा लिया। 
रोकते रहे बच्चे बिलखते हुए, 
छोड़ आये उन्हें यूँ सुबकते हुए। 
 
भरी नहीं जब तक एजेंट की जेब, 
रखे रखा उन्हें जाने कौन से देश। 
रात अँधेरी थी लेने आई एक नाव, 
बीस नहीं उसमें ठूँसे गये पूरे साठ। 
 
नाव छोटी तूफ़ान था भयानक, 
पलट गई पल में वह अचानक। 
हुई सुबह तो हाहाकार मच गया, 
सागर-तट शवों से जब भर गया। 
कुछ-एक को समुद्र निगल गया, 
खारा पानी उम्मीदों पर फिर गया। 
 
तितर-बितर तट पर पड़ा सामान, 
मिटा गईं लहरें रेत पे लिखे नाम। 
तटीय-फेन भाँति फूटती तक़दीरें, 
झूठी साबित हुईं हाथ की लकीरें। 
 
उड़ गये थे चाहत के चिथड़े-चिथड़े, 
चले गये माँओं के दिल के टुकड़े। 
चकनाचूर हो गये भाइयों के सपने, 
रह गये मुट्ठी में बन्द बहन के अपने। 
 
ख़ून नहीं, बहता है माँग का सिन्दूर, 
बच्चों के पापा यूँ चले जायें जब दूर। 
बच्चों के पापा यूँ चले जायें जब दूर। 

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