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निखरता सौंदर्य 

 

भारत में हो रहे अपने भाँजे के विवाह के अवसर पर मेरी हमउम्र रूही व मेरा मिलना लगभग चालीस वर्षों बाद हुआ। हमारे सभी रिश्तेदारों की बेटियों में वह सबसे अधिक सुन्दर थी . . . और इसका उसे घमण्ड भी था। परन्तु साथ ही साथ यह कहना अनुचित न होगा कि वास्तव में उन दिनों लगता भी यूँ ही था कि कहीं हाथ लगाते ही वह मैली न हो जाये। इसीलिए आश्चर्य की बात नहीं कि घर बैठे-बिठाये ही उसके लिए रिश्ता भी आ गया, और हम सब लड़कियों में वही सबसे पहले ब्याही गई। 

परन्तु उसे अब इतने बरसों बाद देखकर धक्का लगा कि रूही अब वही पुरानी वाली रूही नहीं रही थी। उसके दोनों गालों के गड्ढे, जो कभी उसके सौंदर्य में चार चाँद लगाया करते थे, उनकी जगह अब पिचके गालों के गहरे गड्ढों ने ले ली थी। दमकते गोरे रंग को चेहरे पर पड़ी झाँइयों ने कहीं ढाँप-सा दिया था। 

विवाह के माहौल में कुछ दिन रूही के साथ बिताने पर मुझे महसूस हुआ कि वाक़ई पुरानी वाली रूही अब वही रूही नहीं रही। बहन के घर में पहली-पहली शादी होने के कारण मेरी बहन तनाव का शिकार हो गई थी। रूही ने ही उसे ढाढ़स बँधाया कि वह बिल्कुल भी चिंता न करे। विदेश से मेरे वहाँ पहुँचने पर रूही भी दो सप्ताह पहले शादी वाले घर पहुँच गई। उसने बताया कि उसका अपना ससुराल बड़ा होने के कारण और इकलौती भाभी होने के नाते अपनी चार-चार ननदों को ब्याहते-ब्याहते उसे बड़ी से बड़ी ज़िम्मेदारी निभानी आ चुकी है। 

किसी काम को हाथ न लगाने वाली या किसी से सीधे मुँह बात न करने वाली अल्हड़ व चुलबुली सी पुरानी रूही अब दौड़-दौड़ कर रसोईघर से लेकर मेहमानों की देख रेख बहुत ही स्वाभाविक व सुघड़ ढंग से कर रही थी। 

कौन कहता है कि आयु के बीतते सौंदर्य साथ छोड़ जाता है? रूही को देखकर यही लगा कि उसकी सुंदरता कहीं नहीं गई, बल्कि उसके चेहरे से सरक कर अब और भी निखरती हुई उसके दिल में जा बसी है। 

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