सहेली मेरी
शायरी | सजल मधु शर्मा1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तेरा कभी नहीं वो तो पराया था,
क्या सोच तूने दिल लगाया था।
पता कैसे भूल गया तेरे घर का,
सारा जहान जो घूम आया था।
लौट कर मेरे पास ही आता है,
झूठा यकीं ख़ुद को दिलाया था।
पड़ोस के आँगन बच्चे खेलते देख
दिल तेरा भी शायद भरमाया था।
सुबह का भूला शाम घर आयेगा,
घरवालों को तूने समझाया था।
पागलपन तेरा चन्द रोज़ का है,
क्यों मैंने ख़ुद को झुठलाया था।
हद कर दी तूने तो दीवानगी की,
बिन ब्याहे ताउम्र सिंदूर लगाया था।
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