तंग सोच
कथा साहित्य | कहानी मधु शर्मा15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
“आय'म सॉरी गर्ल्ज़, वौन्ट बी एबल टू गो टू द पब विद यू टुडे . . . ,” (मुझे माफ़ करना, आज मैं तुम्हारे साथ पब नहीं जा पाऊँगी)। अपना हैंडबैग व लैपटॉप समेटते हुए मानसी ने अपनी दोनों श्वेत सहकर्मियों एन्जला व सैली से कहा। उनके पूछने पर उसने केवल इतना ही बताया कि उसके बेटे के स्कूल से फ़ोन आया है कि उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है। ऑफ़िस-मैनेजर से जाने की आज्ञा लेकर मानसी उन्हें यह बताने आई थी।
एन्जला और सैली उसे धैर्य बँधाते हुए उसे ऑफ़िस के द्वार तक छोड़ने आईं। जब वे अपने डैस्क पर लौटीं तो दो अन्य पुरुष-सहकर्मी अपने डैस्क से ही उन्हें सम्बोधित करते हुए अंग्रेज़ी में कहने लगे, “मानसी न सही, आज हमारे साथ पब चलती हो? . . . ड्रिंक हमारी तरफ़ से।”
“थैंक्स, बट सॉरी मेट . . . आप लोग तो बोर कर देंगे। मानसी तो अपने हँसमुख स्वभाव के कारण हमें हँसी-मज़ाक वाली ढेरों बातें सुनाकर हमारी दिनभर की काम की टैंशन दूर कर देती है!” सैली ने भी उन्हीं के अन्दाज़ में जवाब देते हुए कहा। यह सुनकर दोनों पुरुष झेंप से गये।
मानसी सहित एन्जला व सैली इस बात से परिचित थीं कि ऑफ़िस की बिल्डिंग से जुड़े पब में मानसी का रोज़-रोज़ यूँ काम के बाद उनके साथ जाना, उस ऑफ़िस में काम करने वाले लगभग सभी साउथ-एशियन को बहुत खलता था। और उससे भी अधिक वो लोग इस बात से हैरान-परेशान रहते कि यदि मानसी ने अवकाश लिया हो या जिस दिन वह घर जल्दी चली जाए तो ये दोनों भी उस दिन पब नहीं जातीं।
परन्तु मानसी के अन्दर छुपे उसके दुख और बोझ की किसी को भनक तक न थी। यहाँ तक कि उसके साथ हर समय उठने-बैठने वाली ये दोनों सहेलियाँ भी उसकी परिस्थिति से अनजान थीं।
मानसी यद्यपि पब जाती लेकिन केवल जूस या कोल्ड-ड्रिंक ही लेती। तब तक पाँच बजे स्कूल द्वारा ही संचालित स्कूल-क्लब समाप्त होने पर अपने इकलौते बेटे को लेने का समय भी हो जाता। स्कूल उसके ऑफ़िस के समीप ही था। वहाँ से बस पकड़ कर छह बजे तक दोनों थके-हारे घर पहुँचते।
ऑफ़िस में हुई मानसिक व शारीरिक थकावट से चकनाचूर, वहाँ से सीधा घर की ओर जहाँ, उससे भी अधिक असहनीय, घरेलू माहौल को सहन करने के लिए मानसी ने पिछले सात वर्षों में क्या-क्या जतन नहीं किये। लेकिन उसका मानसिक तनाव बढ़ता ही चला जा रहा था। क्योंकि घर पहुँचते ही सास के साथ-साथ बीमार पति के तानों की बौछार को सुना-अनसुना कर चौका-चूल्हा सम्भालना; साथ ही साथ बेटे की होमवर्क में सहायता करना; डिनर से निबट उसे नहलाने-धुलाने के पश्चात उसे सुलाना; अगले दिन के खाने-पीने, पहनने के लिए बेटे, पति व अपने कपड़े इत्यादि की सोने से पहले पूरी तैयारी करना।
अन्तत: पिछले छह माह से अब ऑफ़िस से सीधा घर न जाकर, इन दो श्वेत सहकर्मियों के साथ पब में केवल आधा घंटा व्यतीत करने के पश्चात मानसी को उस तनाव को झेलने की थोड़ी-बहुत ऊर्जा मिलने लग गई है। और तो और अब उसे इस बात की भी चिन्ता नहीं कि लोग उस पर उँगली उठाते हैं। वह जान गई है कि बुराई उसके पब जाने में नहीं बल्कि लोगों की तंग सोच में थी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं