अर्पण
शायरी | सजल मधु शर्मा15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
बाहर दर्पण है,
भीतर दर्शन है।
साफ़ या मैला,
उजला तन है।
गिर के सँभलते,
यह क्या कम है।
डूब कर उभरना,
तुम में वो फ़न है।
मन्दिर मन है,
तुम्हें अर्पण है।
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