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कैसे-कैसे सेल्ज़मैन

 

डिग्री हासिल करके भी ईमानदार, अख़बार बेच रहे, 
रातों-रात पैसा बनाने हेतु बेईमान, हथियार बेच रहे। 
 
इस कलयुग में भरोसा किस पे करें और किस पे नहीं, 
दुश्मन को बाद में, यार पहले अपने ही यार बेच रहे। 
 
कमाल तो देखें कामयाब कम्पनी के कर्मचारियों का, 
नाव हो न हो, धल्लड़े से ग्राहकों को पतवार बेच रहे। 
 
आसानी से बेवक़ूफ़ बनने वाले ऑनलाइन पर मिलेंगे, 
नक़ली माल असली बताकर जिन्हें, मक्कार बेच रहे। 
 
माँ-बीवी के गहने बेचकर जब ऐशो-आराम पूरे न हुए, 
बेझिझक अब वो पुरख़ों का बनाया घर-बार बेच रहे। 
 
पानी की तरह पैसा बहाकर पहले तो वोट ख़रीदे गये, 
गद्दी मिलते ही ग़द्दार अब, अपनी ही सरकार बेच रहे। 
 
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, हर धर्म में कुछ ठेकेदार, 
मौजूदगी में रब की जो मंदिर-गुरूद्वारे-मज़ार बेच रहे। 

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