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बिना अन्त की कहानी

 

(प्रिय पाठकगण, यह कहानी पढ़ने के बाद आप इसका अन्त किस प्रकार का करना चाहेंगे? जानने की इच्छुक — मधु शर्मा) 

 

मोलू व गोलू बचपन से ही जंगल में हाथियों के एक बड़े से समूह में एक साथ पल रहे थे। एक साथ खाना-पीना, खेलना व हर पल का साथ होने के कारण दोनों की मित्रता प्रगाढ़ होती चली गई। 

एक दिन चिड़ियाघर वाले मोलू को अचानक पकड़ कर समीप के ही एक शहर ले गये। गोलू उनके हाथ न आ सका, लेकिन गोलू अपने मित्र को खोकर अत्यन्त दुखी हुआ। उसने कितने ही सप्ताह बिन खाये-पीये व्यतीत कर दिये। 

उधर मोलू भी अपनी स्वतंत्रता खो जाने से अधिक अपने सखा गोलू से बिछुड़ जाने के कारण सदा उदास रहता और प्रतिदिन चिड़ियाघर से छूटने के उपाय खोजा करता। यूँ ही लगभग दो वर्ष बीत गये। 

एक रात अवसर मिलते ही मोलू चिड़ियाघर का गेट खुला देख वहाँ से छुपते-छुपाते और फिर भागते हुए जंगल में अपने समुदाय को ढूँढ़ता हुआ वहाँ पहुँच गया। उसके सम्बंधियों से अधिक ख़ुशी से पागल हुआ गोलू अपने मित्र को पाकर पूरी रात नाचता रहा। 

परन्तु ईर्ष्या देवी धीरे-धीरे कब और कैसे किसी के दिल में प्रवेश कर जाती है, किसी बुद्धपुरुष को भी इसकी भनक नहीं पड़ती। हुआ यूँ कि शहर की नई-नई, चटपटी व आश्चर्यजनक बातें सुनने के लिए मोलू के इर्द-गिर्द हर पल जानवरों की भीड़ लगी रहती। गोलू चुपचाप कोने में खड़ा उसकी प्रतीक्षा करता कि वह कब उसके साथ खेलने व घूमने का समय निकालेगा। 

लेकिन मोलू तो अपने मित्र को पहले ही की भाँति प्यार करता था। इसीलिए वह लोगों को अपनी बातें आधी-अधूरी सुनाकर गोलू को साथ ले हर शाम टहलने निकल जाता। 

एक दिन एक अत्यन्त गहरी खाई के किनारे खड़े हो दोनों मित्र सामने वाले पर्वत के पीछे सूर्यास्त होने के मनोहर दृश्य का आनन्द ले रहे थे कि अचानक गोलू के पलटने पर उसका पीछे का पाँव मोलू से जा टकराया। अगले ही पल मोलू उस गहरी खाई में जा गिरा। गोलू बहुत समय तक वहाँ खड़ा मोलू को पुकारता रहा लेकिन कोई उत्तर न पाकर लौट गया और रोते हुए अपने समूह को पूरी दुर्घटना सुनाई। बड़े-बूढ़ों ने उसे समझा बुझाकर शान्त किया कि होनी को कौन टाल सकता है। 

उधर मोलू खाई में जब गिरा तो लुढ़कते हुए तुरन्त ही एक बड़े से वृक्ष से जा टकराया और उठ खड़ा हुआ। उसे गोलू की पुकार सुनाई तो दे रही थी लेकिन उस तरफ़ कोई ध्यान न देकर वह ऊपर चढ़ने की बजाय उस खाई से नीचे उतर गया। 

कारण? 

पिछले कुछ दिनों से मोलू को गोलू की आँखों में वह ईर्ष्या दिख तो रही थी लेकिन वह उसे अपना वहम समझ कर देखा-अनदेखा करता रहा। आज गोलू का उसे जानबूझकर खाई में धकेलना उसके वहम को वास्तविकता का रूप दे गया। 

पूरी रात सोचने पर मोलू इस निर्णय पर पहुँचा कि . . .

(कहानी का अन्त कृपया आप पाठकगण ही सुझाइएगा) 

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