अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

वरदान भरा श्राप

 

मम्मी-पापा के एक दुर्घटना में अचानक स्वर्गवास होने पर मुझे अपनी कॉलेज की पढ़ाई आधी-अधूरी छोड़ पापा की दुकान सम्भालनी पड़ी। हमारा घर दुकान के ऊपर वाले हिस्से में ही था। मैं उनकी पहली संतान थी व मेरे दोनों भाई आयु में छोटे होने के कारण पापा मेरी छुट्टी वाले दिन या काम के लिए कहीं आने-जाने पर वह अक़्सर मुझे ही दुकान सौंप निश्चिंत हो चले जाते थे। 

इतना बड़ा आघात और मैं केवल बीस बरस की . . . दोनों छोटे भाइयों की ज़िम्मेदारी मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने ऊपर ले ली, क्योंकि उनकी देखभाल करने वाला मेरे अतिरिक्त कोई और था भी नहीं। 

♦    ♦    ♦

समय बीतता गया। कब दोनों की पढ़ाई पूरी हुई और उनके विवाह भी (दोनों ही की लव-मैरिज) बिना किसी बाधा के कैसे सम्पन्न हुए, मालूम ही न चला। परिवार, दुकान, शादी-ब्याह इन सभी व्यस्तताओं में मुझे अपने बारे कभी सोचने का अवसर ही न मिला . . . और न ही मुझे आज तक इस बात की कोई रंजिश रही। 

मुझ से छोटा भाई जो पढ़ाई में कुछ कमज़ोर ही रहा, जैसे-तैसे बी.ए. पास करने के बाद दुकान में मेरा हाथ बँटाने में लग गया। अपने ही साथ पढ़ने वाली एक लड़की से विवाह कर लगभग दो बरस तो ख़ुश रहा। लेकिन दुकान अच्छी चल निकली थी तो वहाँ उसका अधिकतर समय बीतने के कारण भाभी ने आये दिन का झगड़ा करना शुरू कर दिया कि उनके यहाँ संतान न होने की वजह दुकान और घर का एक ही बिल्डिंग में होना ही है। परेशान होकर व मेरे समझाने पर वह समीप ही किराए का घर लेकर पत्नी सहित रहने लग गया। लेकिन बरसों बाद भी भाभी की गोद न भरी। 

उधर हमारा छोटा भाई पढ़ाई में होशियार था। वह आई.ए.एस. बनकर दूसरे शहर में नौकरी करने लगा था। वहीं अपने ऑफ़िस में काम करने वाली सहकर्मी जो अपने माँ-पिता की इकलौती संतान थी, उस के साथ विवाह रचाकर घर-दामाद बन गया। समय बीतते उनके यहाँ प्यारा-सा एक बेटा व फिर बेटी हुई। परन्तु होनी को कौन टाल सकता है, जब छोटी भाभी कैंसर से जूझती हुई शीघ्र ही चल बसी। 

दोनों भाइयों का अपना-अपना दुख . . . और सुनने-सुनाने के लिए उनकी माँ समान मैं इकलौती बहन। बड़ा भाई पत्नी के दिन-रात के तानों से परेशान तो छोटा भाई अपने बच्चों को ननिहाल से निकाल कर . . . जहाँ वे पैदा हुए व बड़े हुए . . . कहीं और तबदीली करवाने से मजबूर। मेरा फ़ोन सदा व्यस्त रहता, कभी बड़े का दुखड़ा तो कभी छोटे की दुविधा भरी कहानी। 

मैं लाचार! कर भी क्या सकती थी!! हाँ . . . केवल प्रभु से प्रार्थना ही करती रही कि हे ईश्वर, मेरे भाइयों का हर दुख हर ले। और भगवान ने मेरी सुन ली। 

मेरे दोनों ही भाई एक ही वर्ष के अन्तराल में कोरोना के क्रूर हाथों अपने प्राण गँवा बैठे। मैं निर्दोष होकर भी अपनी प्रत्येक श्वास के आते-जाते स्वयं को अपराध-ग्रसित महसूस कर रही हूँ। मुझे क्या मालूम था कि भगवान सुन तो लेते हैं लेकिन वही प्रार्थना एक वरदान नहीं श्राप भी सिद्ध हो सकती है। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

किशोर साहित्य कविता

ग़ज़ल

किशोर साहित्य कहानी

कविता - क्षणिका

सजल

चिन्तन

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता-मुक्तक

कविता - हाइकु

कहानी

नज़्म

सांस्कृतिक कथा

पत्र

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

एकांकी

स्मृति लेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं