भयभीत भगवान
काव्य साहित्य | कविता मधु शर्मा15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
(प्रभु श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
हे अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।”
परन्तु सम्भवतः भगवान अब भयभीत हो गये हैं!!)
देखकर दुनिया में आतंक, धर्म मर गया,
यह देख दुनिया बनानेवाला भी डर गया।
मौत के घाट उतारे जा रहे कितने निर्दोष,
असली दोषी खुलेआम करते फिरें मौज,
घड़ा पाप का फूटा ही नहीं जब भर गया,
यह देख दुनिया बनानेवाला भी डर गया।
“जब-जब धर्म की हानि हो प्रकट होता हूँ,
अधर्म के बढ़ते ही मैं अवतरित होता हूँ।”
घर-घर में परन्तु अधर्म जब घर कर गया,
यह देख दुनिया बनानेवाला भी डर गया।
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