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कब टूटेगी यह कड़ी

 

इंग्लैंड जैसे ठंडे देशों में शरद-ऋतु समाप्त होते ही शादी-ब्याह के निमन्त्रण, दावतनामे इत्यादि धड़ाधड़ आने आरम्भ हो जाते हैं। 

जिनके रिश्तेदार बहू गणना में यहाँ बसे हुए हैं, उन महिलाओं में तो यही होड़ शुरू हो जाती है कि उन रिश्तेदारों के यहाँ एक के बाद एक होने वाले फ़ंक्शन पर एक बार पहनी पोशाक फिर से ‘न’ पहनने का अर्थ है स्वयं को अन्य महिलाओं की दृष्टि में ऊँचा बनाये रखना। बस फिर क्या होता है . . . कपड़े-जूतों की शॉपिंग के साथ-साथ शादी-ब्याह से जुड़े ढेरों ख़र्चों के लिए उन्हें अपने-अपने बैंक-अकाउंट पर हमला बोलना ही पड़ता है। 

रही पुरुषों की बात, तो दूल्हे या उसके भाइयों को छोड़कर अन्य मर्दों के लिए नये कपड़े-जूते कोई विशेष महत्त्व नहीं रखते . . . वही अपना पुराना थ्री-पीस सूट या शेरवानी पहनी और उनका निर्वाह हो गया। परन्तु . . . परन्तु आजकल पुरुषों की भी एक नयी बीमारी के कारण उनके बैंक-अकाउंट ख़ाली हो जाने के उपरान्त क्रेडिट-कार्ड कम्पनियों की चाँदी ही चाँदी होने लगी है। 

हुआ यूँ कि बड़े भाईसाहब के बेटे के विवाह पर व्यंजन के दस-बारह आइटम देखकर सभी मेहमानों ने भोजन की बहुत प्रशंसा की। यह देखकर उनके साले-साहब ने निर्णय कर लिया कि दो सप्ताह बाद अपने बेटे की होने वाली शादी पर अब वह भोजन के आइटम बढ़ा कर पन्द्रह तो अवश्य रखेंगे ही रखेंगे। ऊपर से उनका बेटा इस बात पर अड़ गया कि इस कज़न की शादी पर तीन लिमोज़ीन किराए पर ली गई हैं, तो मैं अब लिमोज़ीन पर न जाकर घोड़ों वाली बग्घी पर ही बैठकर बारात लेकर जाऊँगा। 

और हुआ भी यही। लेकिन जिन मेहमानों ने पहली शादी पर तारीफ़ों के पुल बाँध दिए थे, वही लोग वे सब भूल-भुलाकर अब इस विवाह पर हुई आवभगत का दिल खोलकर गुणगान कर रहे थे। बेचारे भाईसाहब अपना-सा मुँह लिए एक कोने में जा बैठे। बेटे की शादी पर उन्होंने यही सोचकर इतना पैसा लगाया था कि लोग उन्हें बरसों-बरस याद रखेंगे . . . परन्तु दो सप्ताह बाद ही उनके सब किये-कराये पर पानी फिर गया। 

अब सुना है कि उनके साले-साहब के किसी क़रीबी रिश्तेदार ने एक भव्य हॉल में हुई इस दूसरी शादी की धूमधाम देखकर मन बना लिया है कि अगले महीने हो रही अपनी बेटी की शादी हॉल में नहीं किसी बड़े से होटल में करेंगे . . . और उनका दामाद घोड़े पर नहीं, बल्कि उनके पैसों से किराए पर लिए गये हैलीकॉप्टर में ही आयेगा . . . उसके लिए चाहे उन्हें बैंक ही क्यों न लूटना पड़ जाये! 

बड़े भाईसाहब के साथ-साथ उनके साले-साहब की हालत उस तीसरी वाली शादी में देखने वाली तो होगी ही . . . लेकिन आगे-आगे देखिएगा होता है क्या! लग तो यही रहा है कि यह दिखावेबाज़ी की कड़ी अभी इतनी सरलता से टूटने वाली नहीं। 

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