बड़प्पन
आलेख | चिन्तन मधु शर्मा1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
प्रभु के अस्तित्व में पूर्ण आस्था रखते हुए भी मैं स्वयं को धार्मिक रीति-रिवाज़ों से दूर रख, आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने का प्रयास किया करती हूँ। फिर भी, कल अयोध्या में प्रभु राम की प्राण-प्रतिष्ठा किये जाने पर चन्द लोगों की उँगलियाँ उठती देख चिंता हुई। परन्तु कुछ ही क्षणों पश्चात चिंता ने चिन्तन का रूप ले लिया।
ऐसा है कि इन बु्द्धपुरुषों से पूछना चाहूँगी कि उस समय तो देश में किसी ने किसी प्रकार का विरोध नहीं किया, जब लगभग तीन दशक पश्चात भारत ने २०११ में वर्ल्ड-कप जीता था तो धूमधाम से अनेकों समारोहों का आयोजन किया गया व छुट्टी की भी घोषणा कर दी गई थी। परन्तु अब किसी को अपनी कोई खोई हुई वस्तु, और वह भी पाँच शताब्दियों पश्चात, फिर से प्राप्त हो गई . . . और वह भी क़ानून द्वारा सौंपे जाने पर . . . तो उन बुद्धपुरुषों का अपने ही देश के हर्षोल्लास में सम्मिलित होकर बड़प्पन दर्शाने में क्या घट जाता?
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