पतझड़ के पत्ते
काव्य साहित्य | कविता मधु शर्मा1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सूखे पत्तों के झुंड के झुंड,
पवन के बनाये चक्रण संग,
कभी इधर, तो कभी उधर,
बग़ीचों में गए हैं यूँ बिखर।
पड़ोसी कैसे झुँझला रहे हैं,
हम हैं कि जो मुस्कुरा रहे हैं।
क्योंकि . . .
ताज़ा हो गईं बचपन की यादें,
हम जब खेलते-खिलखिलाते,
बना कर उन जैसे झुंड के झुंड,
सूखे पत्तों के घूमते चक्रण संग,
कभी इधर, कभी उधर, दिनभर,
बना कर अपनी बाज़ुओं को पर,
बग़ीचों में यूँ ही उड़ानें सी भरते थे,
थम जाती हवा हम नहीं थमते थे।
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