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निर्मल सिद्धू

निर्मल सिद्धू टोरोंटो क्षेत्र के लोकप्रिय साहित्यकारों में उभरने वाला एक नया हस्ताक्षर है। पंजाब प्रान्त में जन्मे श्री निर्मल सिद्धू का लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा कलकत्ते में हुई। इसीलिए अपने कला और साहित्य के प्रति लगाव को वे बंगाल की देन मानते हैं। लिखने का शौक जो स्कूल, कॉलेज के ज़माने से शुरू हुआ था अब कैनेडा प्रवास के दौरान अपनी परिपक्वता की ओर बढ़ रहा है। मध्य एशिया व यूरोप के विभिन्न मुल्कों में अपने क़याम के दौरान जो अनुभव प्राप्त किये गए उन्हें काव्य रूप में संकलित करने का प्रयास जारी है। स्थानीय समाचार पत्रों व अंतरजाल की पत्रिका साहित्य कुंज में यदा-कदा उनकी ग़ज़लें व नज़्में पढ़ने को मिल जाती हैं। जीवन की भिन्न भिन्न उलझनों पर सुझाव सहित लिखना उनकी प्राथमिकता रहती है। साथ ही हिन्दी, उर्दू और पंजाबी; तीनों ही भाषाओं में अधिकारपूर्वक लिखना भी उनकी एक विशेषता है। ज़िन्दगी के मीठे कड़वे अनुभवों को पूरी दक्षता के साथ सरल शब्दों में बाँधना उन्हें आता है। भावनाओं के उतार-चढ़ाव व अन्तर्मन से उठती तरंगों को ग़ज़ल के माध्यम से व्यक्त करना उन्हें बेहद पसन्द है। निर्मल सिद्धू की दो पुस्तकें, "ज़ज़्बात का सफ़र" (ग़ज़ल-संकलन) और "निर्मल भाव" (काव्य-संकलन) प्रकाशाधीन है। सम्पूर्णता को तलाशते हुए श्री निर्मल सिद्धू का ये मानना है कि साहित्य सफ़र एक अंतहीन यात्रा है, जिसकी मंज़िल चाहकर भी नहीं मिलती। शायद इसीलिए उनका कहना है

कौन से रंग से इस हयात को रँगता चलूँ
क़ामयाब हो आना मेरा और मैं हँसता चलूँ

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