मेरा देश
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू22 Feb 2016
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
सबसे बेहतर इसकी धरा है
देख के इसको लगता है जैसे
दुनिया के माथे पे मोती जड़ा है
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
हर ऋतु का यहाँ मेवा मिलता
हर मौसम का रूप है खिलता
पर्वत इसके सीस पे सोहे
तो सागर इसके चरण है धुलता
नदियों से जीवन रस छलके है
तो खेतों में सोना यहाँ बिखरा है
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
हँसते गाते रात और दिन हैं
धूम मचाते हर पल छिन हैं
दीवाली हो या हो दशहरा
खुशियों में डूबा जन-जीवन है
अमृत जैसी है संतों की वाणी
मानव से मानव का प्रेम खरा है
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
विश्व में जब था अंधेरा छाया
इसने ज्ञान का नूर फैलाया
दुनिया जब भी राह से भटकी
इसने प्रेम का पथ दिखलाया
आज भी जिसने इसको पुकारा
इसने उस पर हाथ धरा है
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
प्रेम और शान्ति से ये चाहे रहना
भले उसके लिये पड़े कुछ भी सहना
तो भी इसको कम न समझना
दुनिया वालो इसे कुछ मत कहना
वर्ना इसका इक इक योद्धा
मैदां में पूरे का पूरा उतरा है
स्वर्ग से सुन्दर देश मेरा है
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