नव वर्ष
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू7 Dec 2013
सरकता जा रहा है
रफ़्ता-रफ़्ता
हाथ से
उम्र का
एक और
मुक़ाम,
एक और साल,
चला आ रहा है
आहिस्ता - आहिस्ता
सामने से
विधाता का
एक और
उपहार,
एक और साल,
कोई ख़ला नहीं
कोई शून्य नहीं,
एक हाथ से
कुछ निकलता है तो
दूसरे में कुछ
चला आता है,
जीवन चक्र सर्वदा
इसी परिधि में
घूमता
जाता
है ......
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