आपसे बात मेरी जो बनने लगी
शायरी | ग़ज़ल निर्मल सिद्धू8 Jan 2019
आपसे बात मेरी जो बनने लगी
दिल बहकने लगा आस जगने लगी
धीरे-धीरे हुआ ये असर जान-ए-मन
हर तमन्ना मेरी फिर मचलने लगी
दर्द-ए-तन्हाई अब दूर होने लगा
होश उड़ने लगा रूह खिलने लगी
दास्तान-ए-मुहब्बत हुई है जवां
वो कली प्यार की फिर संवरने लगी
हाथ जब से है थामा मेरा आपने
ज़िन्दगी को नई राह मिलने लगी
आज 'निर्मल' ने मौसम को कहते सुना
हर घड़ी प्यार में अब तो ढलने लगी
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