अपना-समय
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
अय दोस्त,
हो सके तो तुम मुझे
अपना समय दिया करो,
बात ये
दूसरों को दिये गये समय की नहीं
बल्कि तुम्हारे अपने समय की है,
वो समय
जिसके तुम मालिक हो
जो तुम्हारा अपना है
जिस पर, तुम्हारा ही अधिकार है
जिसे देने में
तुम्हें कोई हिचकिचाहट न हो
और जिसे देकर
तुम्हें कोई पछतावा भी न हो
क्यों,
क्योंकि
अपना समय बहुत ही स्वच्छन्द
निडर और बेबाक होता है,
इसमें अपना ही अपनापन होता है
जज़्बों का एक अनूठा सा
दीवानापन होता है,
एक दूसरे को समझने में
आसानी होती है
दुनिया को जाँचने व परखने की
क्षमता होती है,
और तो और
अपना समय देने से
रिश्तों को मज़बूती मिलती है
समस्याओं से निपटने की
नई राहें निकलती हैं,
याद रखना
वक़्त की गर्दिश में
अपने समय का रंग कभी
खोया नहीं करता,
अपनों को अपना समय देने से बेहतर
कोई और तोहफ़ा हो नहीं सकता,
इसलिये अय दोस्त
तुम मुझे अपना समय दिया करो
अपना समय दिया करो
अपना समय दिया करो . . .
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