नया साल (निर्मल सिद्धू)
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू3 Jan 2008
समय के माथे पर लिखने को
तैयार हो चली फिर नई कहानी
उपहार नया दे रहा है दस्तक
कैसे भूलें कल की मिली निशानी
आकाश की गहरी चादर से
है एक सितारा टूटने वाला
समय के सुन्दर इस लिबास में
पैबन्द नया है लगने वाला
वक्त के उड़न खटोले से कल
किस झोली में क्या गिर जाये
ख़ुद वक्त बताये गुप्त भेद यह
वर्ष अगले जब पलट के आये
उम्र की नाज़ुक गर्दन पर तब
दबाव काल का और बढ़ेगा
इतिहास की मोटी पुस्तक में फिर
वर्क़ नया एक और जुड़ेगा
तो भी नये साल का करते स्वागत
डर वाली हममें कोई बात नहीं
मरने से पहले ही क्यों मर जाना
क्या हम आदम की ज़ात नहीं
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