ओ राही
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू5 Mar 2012
दुर्गम पथ का राही है तू,
ग़म की नगरी का है वासी,
मरुस्थल सा तपता जीवन,
रुह तेरी है अब तक प्यासी।
चारों ओर हैं बंधन तेरे,
अंधेरों ने तुझको घेरा,
कदम कदम पे रोक रखा है,
कठिनाइयों ने रास्ता तेरा।
फिर भी तुझको ओ प्यारे,
हर हालत में चलना है।
लेकर प्रेम की रोशन माला,
तन मन उज्जवल रखना है।
जीवन तेरा सफल रहेगा,
समझे जो तू बात ज़रा सी,
छोड़ के दुख की नगरी प्यारे,
प्रेम नगर का बन जा वासी।
दुर्गम पथ का राही है तू,
ग़म की नगरी का है वासी,
मरुस्थल सा तपता जीवन,
रुह तेरी है अब तक प्यासी।
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