दुआ या कुछ और...
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल सिद्धू1 Mar 2019
“ये लो, वो गुरबख़्श भी आ गया, अब एक जन और आ जाये तो हम सारे मिल के ताश की बाज़ी लगायें,” पार्क की बेंच पर बैठे हुये जोगिंदर ने गुरबख्श को आते देख साथ बैठे दलबीर से कहा।
“नहीं यार,” दलबीर ने उसे टोका, “हम तीनों ने आज यहाँ से जल्दी ही चल पड़ना है और जाके अपने घर के गेराज में बैठना है। मैं सारा प्रबन्ध कर आया हूँ। बोतल के साथ-साथ खाने-पीने का पूरा सामान रख के आया हूँ। अब शाम की पार्टी वहीं चलेगी।”
“पर यार, कल तो तू कह रहा था कि पैसे ख़त्म हो गये हैं फिर आज ये सारा सामान कहाँ से आ गया?” जोगिंदर ने पूछा, तब तक गुरबख़्श भी उनके क़रीब आके बैठ चुका था।
“आज सुबह ही बेटे ने मेरे क्रेडिट कार्ड में पैसे डलवा दिये थे तो मैंने सोचा चलो आज जशन मनाते हैं,” दलबीर ने ज़रा गर्व से कहा।
“यार तू बहुत लक्की है जो तुझे ऐसी औलाद मिली है वर्ना आजकल तो, तू जानता ही है..” जोगिंदर ने बात बीच में ही छोड़ दी।
“हाँ यार, मेरा बेटा बहुत ही अच्छा है, कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने देता। रुपये-पैसे से लेकर कपड़े-लत्ते तक सब भरपेट मिलता है,” दलबीर ने बेटे की तारीफ़ करते हुये कहा।
“यार, बेटा-बहू तो मेरे भी बहुत अच्छे हैं,” जोगिंदर ने ज़रा धीमे से कहा, “वैसे तो किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है, हाँ पर जब वो बार-बार ये कहते हैं कि पंजाब वाली ज़मीन और घर बेच कर पैसे यहाँ ले आओ, हमने बिजनिस करना है तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। यार मैं छह महीने कनेडा में और छह महीने पंजाब में अपने यारों-दोस्तों के साथ मज़े में रहता हूँ, मेरा सारा ख़र्चा वहीं से चल जाता है। अब अगर वहाँ सब कुछ बेच दिया तो फिर मैं किस मुँह से वहाँ जाया करूँगा?”
“बात तो तेरी ठीक है जोगिंदर, पर क्या करें ऐसे ही चलता है, हर घर की अलग ही कहानी है, ख़ैर छोड़ो, आओ अब चलें,” दलबीर ने कहा फिर गुरबख़्श को देख बोला, “ओय तू बड़ा चुपचाप है, चल चलें वहाँ बोतल हमारा इंतज़ार कर रही है।”
गुरबख़्श कुछ न बोला। बस चुपचाप उनके साथ-साथ चलने लगा पर चलते-चलते वह यही सोच रहा था कि वह अपने बच्चों के बारे में क्या कहे, यही कि परसों पार्टी के लिये तैयार होने के पश्चात उसका बेटा यह कह कर उसे घर पर ही छोड़ गया कि वह वहाँ जाने के लायक़ ही नहीं है,या फिर वह ये कहे कि कल उसकी बहू ने वाईन का गिलास और खाने की पलेट उसके सामने से उठा ली थी, क्या कहे, क्या अब भी ऐसे बच्चों को दुआ देनी चाहिये या कुछ और...।
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