बदलती सोच
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल सिद्धू1 May 2019
“अब कहिये अंकल जी, जो कहना है,” लवलीन ने चाय की प्याली मिस्टर मल्होत्रा की ओर बढ़ाते हुये पूछा।
डाऊन टाऊन में एक बड़ी सी बिल्डिंग में बने एक ख़ूबसूरत कोण्डो की सजावट से प्रभावित होते हुये मल्होत्रा जी बोले, “वो बात ये है बेटा कि तुम्हारे डैडी ने कहा था कि हम तुमसे...”
“हाँ...हाँ, डैडी का फोन आया था, वो कह रहे थे कि आप अपने बेटे की शादी के सिलसिले मे मुझसे मिलना चाहते हैं।”
“हाँ दरअसल तुम्हारे डैडी संजीव मेरे अच्छे दोस्त हैं, उन्होंने कहा था कि एक बार हम तुमसे यहाँ मिल लें और जो कुछ भी पूछना है पूछ लें, फिर अगर संतुष्टि हो जाये तो बात आगे बढ़ाई जा सकती है,” मल्होत्रा जी ने पास बैठी अपनी पत्नी की ओर देखते हुये कहा।
“मगर अंकल जी, मेरा इतनी जल्दी शादी करने का कोई इरादा ही नहीं है,” लवलीन ने कोरा जवाब देते हुये कहा।
“लेकिन क्यों बेटा, तुम्हारी उमर तक तो हमारे दोनों बच्चे हो चुके थे,यही तो सही उमर है,” मिसेज मल्होत्रा बोल उठीं।
“आंटी जी, किस ज़माने की बात करते हैं आप भी, हमें शादी से अधिक महत्वपूर्ण और भी काम करने होते हैं। अच्छा चलिये, एक बात बतायें आप लोग कि मुझे शादी क्यों कर लेनी चाहिये,” लवलीन ने सवाल दागा।
“घर-परिवार के लिये बेटा, वो भी तो ज़रूरी है,” मिसेज मल्होत्रा बोलीं।
“मेरा घर-परिवार तो मेरे पास है आंटी जी, और वो मुझसे और मैं उनसे बहुत ख़ुश हूँ, किसी और परिवार की मुझे ज़रूरत ही नहीं है, कोई और वज़ह बतायें शादी की...” लवलीन ने मिस्टर मल्होत्रा को देखते हुये पूछा।
“बेटा, आर्थिक सुरक्षा भी तो कोई चीज़ है,” मल्होत्रा जी ने कुछ सोचते हुये कहा।
“आर्थिक सुरक्षा? अंकल जी, मेरी एक लाख डालर की जॉब है और मेरे पास दो चार जॉब की ऑफ़र हमेशा पड़ी रहती हैं, मैं आर्थिक रूप से पूर्णतया सुरक्षित हूँ, और आगे बतायें...”
“पर अपना घर भी तो होना चाहिये लवलीन बेटा,” मिस्टर मल्होत्रा ने फिर कोशिश की।
“अंकल जी, ये मेरा ही घर है, ये कोण्डो मैंने ही ख़रीदा है और अगले दो साल मे ये फ़्री हो जायेगा। अब आगे की सुनिये, आगे की मैं आपको बताती हूँ, मैं एक कैरियर-ओरियेंटेड लड़की हूँ, ना तो मेरे पास समय है और ना ही मैं चाहती हूँ कि किसी अनजान परिवार में जाकर उनकी बेवज़ह सेवा करूँ, बहू बनूँ, उनके बच्चे पालूँ, उनकी हाँ मे हाँ और ना में ना कहूँ, कदापि नहीं। हाँ, अगर ज़रूरत पड़ी तो शादी ज़रूर करूँगी मगर उससे जिसके साथ रहकर जिसे जान लूँगी और समझ लूँगी और जो हर क्षेत्र मे मेरा साथ दे सके, मेरे साथ-साथ चल सके। वैसे, आपको तो पता ही है कि जानबूझ कर ख़ुद को आग में झोंकना कहाँ की समझदारी है, वो तो डैडी ने कहा था इसलिये मैंने आपसे बात कर ली वर्ना मैंने तो उन्हें फोन पर ही मना कर दिया था।”
लवलीन की बात सुनकर मल्होत्रा दम्पति एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।
कुछ देर पश्चात जब वो बिल्डिंग से निकल रहे थे तो उनकी समझ मे नहीं आ रहा था कि वो इंटरव्यू लेकर आ रहे हैं या इंटरव्यू देकर।
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