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आब-ए-हैवाँ दे दे....

मेरी ख़ामोशी को
अब ज़ुबाँ दे दे
आवारगी को
मेरी तू मक़ाँ दे दे 


भटक रही हैं
आरज़ुयें दर-बदर
अपने कूचे में
इनको अमाँ दे दे 


तेरे सिवा कोई और
 न हो साथ मेरे
शबे विसाल दे
चाहे शबे हिज्राँ दे दे 


ग़र्द-ओ-ग़ुबार में
अवस न हो मेरे आँसू
छुपा दे दर्द आँखों
में ऐसी मिजगाँ दे दे 


जीना मरना मेरा
तेरे लिये हो केवल
तेरे लिये ही तड़पूँ
दिल बेकराँ दे दे 


आज़ाद हवाओं पे
लिख सकूँ दास्ताँ कोई
मुक़म्मल मुझको
ज़मी ओ आस्माँ दे दे 


होंठ न काँपे मेरे
सरे दार भी कभी
तौफ़ीक़ दे इतनी
कूवते बयाँ दे दे 


बढ़ चुकी तश्नगी
मेरी बेपनाह अब
सूखे दरख़्त को मेरे
आबे हैवां दे दे 


सह सकें ज़माने की
मुख़ालफ़त ‘निर्मल’
या रब उसको पर्वत
सा जिस्मों जाँ दे दे 

मेरी ख़ामोशी को
अब ज़ुबाँ दे दे
आवारगी को
मेरी तू मक़ाँ दे दे

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