ज़िन्दगी का स्वेटर
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू30 Apr 2007
बुन रहा है बुनने वाला
ज़िन्दगी के स्वेटर
विश्वास और किस्मत
की सलाइयों से
समय की ऊन से
हालात के लच्छों से
दिवस, माह और सालों के
डाल रहा है फंदे
बनाता है भिन्न भिन्न
डिज़ाईन ग़मो ख़ुशी के
बाजूओं को देता है आकार
हिम्मत और हौसले का
आख़िर में बिखेर देता है
रंग ज़रा कहकशां का
हर गले का साईज़ फिर भी
अलग अलग होता है
उसी पुरानी ऊन से वो मगर
हर बार नया स्वेटर बुनता है!
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