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क्या जवाब देंगे हम

क्या जवाब देंगे हम,
हश्र के दिन खुदाया तुझको
तन्वीरे वफ़ा ही न गर हुई
रुह के नगीने में

तड़प अय दिल कि तड़पने
का अपना ही मज़ा है
हासिल क्या हो सकेगा
तुझको, यूँ ही बेमज़ा जीने में

देख तो सही जाकर,
इश्क़ में मुब्तलाँ लोगों को
कितना सकूँ मिलता है
उनको ये ज़हर पीने में

समन्दर या तुफ़ाँ का डर
नहीं, डर तो तब होता है
छोड़ जाता है नाखुदा जब,
तन्हा किसी को सफ़ीने में

दिल की दहलीज़ पार कर,
अन्दर गये तो जाना
बेपनाह दर्द छुपा रखा है,
उसने भी अपने सीने में

जब चली आती है तेरी याद
मौसमे बरसात में
दर्द ही दर्द बरसा है फिर
सावन के महीने में

अच्छा है, हो जायें ग़ाफ़िल
दुनिया के रंजोगम से ‘निर्मल’
तलाश-ए-अमन, आओ कि
चले अब कूचा-ए-मदीने में

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