मैं मुम्बई हूँ
शायरी | नज़्म निर्मल सिद्धू8 Dec 2016
खुशियों का समन्दर मेरा,
हुआ दर्द में तब्दील
किसको दिखाऊँ अब मैं
ग़म की फ़ेहरिस्त तवील
ज़र्रा ज़र्रा हुआ है घायल,
रेशा रेशा है ग़मगीन
चप्पे चप्पे आग बरसती,
आँसू बन गये झील
हब्स के घेरे में घिरके मैं,
आज बनई तमाशई हूँ
मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ
अपने ही जिगर के टुकड़ों को,
आज बिछड़ते देखा
अपने ही सीने पर दुश्मन को,
बारूद उग़लते देखा
ख़ूँ से रँगा है जिस्म मेरा,
हुआ है घायल दिल मेरा
बग़ैर क़फ़न के बेटों,
क़ब्रों में उतरते देखा
दर्द की कितनी तहों से मैं,
आज गुज़र गई हूँ
मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ
मुझको हिस्सों हिस्सों में,
ओ ज़ालिम, काटने वालो
अनगिनत टुकड़ों में मुझे
तुम, आज बाँटने वालो
मेरी आँखों का नूर,
मेरे दिल का सुरूर छीनने वालो
मतलब की ख़ातिर,
तलवे विदेशों के चाटने वालो
जान लो, उजड़ के दोबारा
हरबार ही मैं बस गई हूँ
मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ
बेगुनाहों का लहू जब,
सर चढ़ के तुम्हारे बोलेगा
याद रहे, तुम्हारी माँओं का
कलेजा भी उस दिन डोलेगा
अर्श से बरसेंगे जब,
इंतक़ाम के गहरे बादल
हर ज़ुर्म तुम्हारा वक़्त
अपनी तराजू में तोलेगा
कल चलूँगी रफ़तार से
अपनी, आज सिमट गई हूँ
मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ
ये उजड़े हुए ढाँचे तो
फिर से खड़े हो जायेंगे
दिल पे लगे घाव मगर,
एक दिन रंग तो लायेंगे
क़त्ल को जायज़ और
क़ातिल को पनाह देने वाले
रब की अदालत से भी,
बन न कभी वो पायेंगे
जान लो सब न मैं न्यूयॉर्क,
न मैं लंदन, न ही मैं शंघाई हूँ
मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ, मैं मुम्बई हूँ
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