अँगूठे की छाप
कथा साहित्य | लघुकथा अमिताभ वर्मा1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर पहले उसकी सास की मौत हो गई थी।
छोटी बहन छोटी बहन होती है, चाहे सगी अपनी हो या मामा की लड़की हो।
मौत भी मौत होती है, चाहे जवान की हो या बूढ़े की, अपनी माँ की हो या किसी और की माँ की।
बहन की पीड़ा से भाई सिर से पैर तक भीग गया।”तू घबरा मत, मैं अभी आया!” कह वह बदहवास भागा बहन के बँगले की ओर।
बाग़ीचे में सफ़ेद कपड़े से ढँकी मेज़ पर वृद्धा की बड़ी-सी फ़ोटो पर उसने सफ़ेद गुलाब की पंखुरियाँ चढ़ाईं, बरामदे में पहुँच कर चप्पल उतारी, और पार्थिव शरीर के अन्तिम दर्शन के लिए हॉल में खड़े लोगों की क़तार में शामिल हो गया।
एक घण्टे में ही कितना बढ़िया इन्तज़ाम हो गया था! हो-हल्ला नहीं, फूहड़ दुःख-प्रदर्शन नहीं, अटपटापन नहीं। धूप की महक और कबीर के भजन वातावरण को गरिमामय बना रहे थे।
“दौलत, रसूख़ और सलीक़ा हो, तो हर काम कितनी अच्छी तरह हो जाता है!” सोचता हुआ वह अपनी बारी का इन्तज़ार करने लगा।
बाँह पर हल्के स्पर्श से उसका ध्यान भंग कर घर का बुज़ुर्ग नौकर फुसफुसाया, “छोटी दीदीजी बुला रही हैं!”
'छोटी दीदीजी', यानी उसकी बहन। क़तार छोड़ वह नौकर के साथ हो लिया। एक कमरे के सामने नौकर ने उसे भीतर जाने का संकेत दिया।
बहन अन्दर अकेली थी। उसे देखते ही जैसे बहन को नया जीवन मिल गया। एक स्टैम्प पेपर बढ़ा कर बोली, “इस पर गवाह के दस्तख़त कर दोगे, भैया?”
“जो भी लिखा होगा, बहन के भले के लिए ही होगा, उसमें मीन-मेख निकालनेवाला मैं कौन होता हूँ?” सोच उसने बिना पूछेमाते वृद्धा की वसीयत पर दस्तख़त कर दिये।
बहन बोल उठी, “मैं जानती थी, तुम्ही पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया जा सकता है।”
“लेकिन उन्होंने अपनी वसीयत पर अँगूठा क्यों लगाया? वे तो अच्छी-ख़ासी पढ़ी-लिखी थीं!” उसके मुँह से निकल गया।
“दरअसल, अपने जीते-जी न 'इनके' फ़ादर ने सम्पत्ति का बँटवारा किया, न 'इनकी' मदर ने। मानते ही नहीं थे दोनों! तुम्हें तो आइडिया़ होगा हमारे ख़ानदान की प्रॉपर्टी का। इधर मम्मीजी की डेथ होती, उधर दुनिया-भर के क्लेमेण्ट खड़े हो जाते हिस्सा माँगने! इसलिए हमने पहले से ही यह वसीयत बना कर रख ली थी। आज डेथ के बाद उनका थम्ब इम्प्रेशन लगा लिया इस पर। आख़िर वे भी तो अपनी प्रॉपर्टी हमें ही देकर जातीं न!” बहन ने स्टैम्प पेपर सहेजते हुए कहा।
उसने सहमति में सिर हिलाया। वह सोच रहा था, “दौलत, रसूख़ और सलीक़ा हो, तो हर काम कितनी अच्छी तरह हो जाता है!”
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रश्मि लहर 2023/09/15 05:27 PM
सटीक!