मिलने जुलने का इक बहाना हो
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी1 Mar 2019
मिलने जुलने का इक बहाना हो
बरफ़ पिघले तो आना जाना हो
दिन हो छुट्टी का और बारिश हो
दोस्त हों और शराब खाना हो
अजनबी था मगर वो ऐसे मिला
जैसे रिश्ता कोई पुराना हो
क्यों उठाते हो बोझ यादों का
भूल जाओ जिसे भुलाना हो
देस परदेस में फ़रक क्या है
आब-ओ-दाना हो आशियाना हो
अब तो यह घर पराया लगता है
अब कोई दूसरा ठिकाना हो
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ग़ज़ल
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कहानी
नज़्म
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Rajesh Meena 2024/02/03 08:44 AM
बहुत सुंदर गहरा चिंतन, अदभुत,भाव के सभी रंग समेटे आपकी कविताए