ये ज़िंदगी तो सराबों का सिलसिला सा है
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ये ज़िंदगी तो सराबों1 का सिलसिला सा है
बस इक थकन के सिवा हासिल-ए-सफ़र2 क्या है
क़दम क़दम पे गुज़रते हैं हादसे लेकिन
क़दम क़दम पे कहाँ क़ाफ़िला ठहरता है
न कोई नक़्श-ए-कफ़-ए-पा3 न संग-ए-मील4 कहीं
ये राह-ए-शहर-ए-तमन्ना तो इक मुअम्मा5 है
मैं बार बार छुपाता हूँ ख़ुद को ख़ुद ही से
वो कौन है जो मुझे फिर से ढूँढ लाता है
उसे पता है नहीं कोई मेरे ग़म का इलाज
वो मेरा दोस्त है बस हौसला बढ़ाता है
1. सराब=धोखा देनेवाली चीज या बात, मृगतृष्णा, भ्रम, मिराज, मरीचिका; 2. हासिल-ए-सफ़र=यात्रा का परिणाम;
3.नक़्श-ए-कफ़-ए-पा=पाँव के तलवे का चिह्न; 4. संग-ए-मील=मील का पत्थर ; 5. मुअम्मा=पहेली
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