रोज़ पढ़ता हूँ भीड़ का चेहरा
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी1 Mar 2019
रोज़ पढ़ता हूँ भीड़ का चेहरा
सब के चेहरों पे एक सा चेहरा
मुद्दतों बाद उस को देखा था
उस के चेहरे पे था नया चेहरा
आइने में नज़र नहीं आता
गुम कहाँ हो गया मेरा चेहरा
कुछ नए लोग आएँगे मिलने
तुम भी ले जाओ इक नया चेहरा
उस का चेहरा लिबास था उसका
बदला मौसम बदल गया चेहरा
आइना देख कर परेशाँ हूँ
किस का चेहरा है ये मेरा चेहरा
इक खुली सी किताब था पहले
क्यूँ पहेली है अब तेरा चेहरा
साफ़ शफ़्फ़ाफ़ आइना उसका
गर्द आलूद ये मेरा चेहरा
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- रोज़ पढ़ता हूँ भीड़ का चेहरा
कहानी
नज़्म
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Suresh sangwan 2019/04/05 02:34 PM
वाह वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , जितनी तारीफ़ की जाए कम है बेहद ख़ूबसूरत मतले के साथ ये पेशकश लाज़वाब है ढेरों दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें