जहाँ में इक तमाशा हो गए हैं
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी1 Mar 2019
जहाँ में इक तमाशा हो गए हैं
हमें होना था क्या, क्या हो गए हैं
नुमाइश कर रहे हैं ज़िन्दगी की
नज़ारा अच्छा ख़ासा हो गए हैं
बड़ा मुश्किल था कार-ओ-बार-ए-उल्फ़त
मुनाफ़ा थे ख़सारा हो गए हैं
जिसे ख़ुद आज तक देखा नहीं था
उसी मंज़िल का रस्ता हो गए हैं
ज़रुरत आ पड़ी है दोस्तों की
सभी दुश्मन इकट्ठा हो गए हैं
मकीनों को ख़बर दी जा चुकी है
मकाँ अंदर से खस्ता हो गए हैं
वहाँ सैलाब बढ़ता जा रहा है
यहाँ दरिया भी सहरा हो गए हैं
ख़ुद अपनी ज़ात से डर लग रहा है
ये किस साज़िश का हिस्सा हो गए हैं
अचानक याद उस की आ गई है
भरी महफ़िल में तन्हा हो गए हैं
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कविता
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