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उम्र के तीन पड़ाव 

1.

तब
बात कुछ और थी
तब रास्ता लम्बा ज़रूर लगता था
मगर, 
रास्ते के तमाम मंज़र
बड़े ही लुभावने, तसल्लीदार और
मज़ेदार लगते थे, 
ख़्वाहिशों के ख़ुशबूदार फूल
रास्ते के दोनों तरफ़ बेहिसाब
बिछे हुए थे, 
आसमान भी बिल्कुल साफ़ और
रंगीन नज़र आता था जिस पर
उम्मीदों के अनगिनत सपने सदा
टिमटिमाते रहते थे, 
सो, बचपन के वो कहकहे
वो चुलबुलापन, वो चटपटापन
नये-नये स्वाद के साथ-साथ वक़्त के
हर लम्हे को मस्ती के साथ
निगल जाया करता था, 
सचमुच, 
कुछ पता ही नहीं चलता था वक़्त का, 
क्योंकि, 
तब बात कुछ और थी

2.

फिर, 
फिर बात कुछ बदली
रास्ता तो वही था मगर, 
कई जगहों से उठाया गया सामान
कंधों पर लद जाने से
चाल कुछ धीमी होने लगी, 
सूरज की गर्मी से पिघलता लहू
आँखों से होकर दिल में समाने से
सम्बन्धों को तपने का अवसर मिलने लगा, 
मुहब्बत की वो पुरसुकून घड़ियाँ
हालात के चलते हथेलियों से
धीरे-धीरे खिसकने लगीं, 
“ये हो जाये तो वो करेंगे
वो मिल जाये तो मज़े करेंगे, 
थोड़ा और, थोड़ा और कर लें
फिर सारे सपने पूरे करेंगे “
इन सारे चक्करों में अर्थ-व्यवस्था
सदा ही डाँवाडोल रहने लगी, 
इस तरह रंगीन मिज़ाज जवानी
आहिस्ता-आहिस्ता अधेड़ होती
चली गई, 
क्योंकि
तब बात कुछ बदल जो चुकी थी

3.

और अब, 
अब बात कुछ और हो चुकी है, 
रास्ता अब भी वही है
मगर, इस पर अब
कठिनाइयों के कँटीले झाड़ उग चुके हैं, 
पाँव, दुश्वारियों की पथरीली पगडंडियों
पर चलते-चलते लड़खड़ाने लगे हैं, 
स्वादहीनता और रसहीनता
वृद्ध-अवस्था पर हावी हो चुकी है
नई सरकार के सारे नियम-क़ानून
उसे अब चुभने लगे हैं, 
उस पर बड़ी बात ये कि
इस रास्ते के कुछ पेड़ तो कट चुके हैं
और कुछ की हालत गम्भीर है, 
इसलिये
इससे पहले कि बात पूरी तरह
ख़त्म हो जाये
इसे सँभाल लेना ही बेहतर है
ज़रूरी है कि अब
बात के एक-एक शब्द में
नये-नये शौक़ डालें जायें, 
नई उमंगें और नया
जोश भरा जाये, 
फिर वही जोश भरा जीवन जीया जाये
क्योंकि
जीवन सदा आसान नहीं होता है
इसे इसी तरह आसान, शान्तमय और सहनशील
बनाना पड़ता है . . . 

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