अरे डैडी आप अचानक कैसे?
लघुकथा | विजय विक्रान्तदोपहर का समय था और आनन्द ब्रेक में खाना खाने के लिये कैफ़ेटेरिया में जाने की तैयारी कर ही रहा था कि एकाएक दरवाज़े की घण्टी बजी। दरवाज़ा खोलने पर आनन्द ने अपने डैडी को सामने खड़ा पाया।
“अरे डैडी, आप अचानक कैसे? आज सुबह ही तो मैं घर से यहाँ आया हूँ। एकाएक क्या कोई बिज़नेस का काम आ पड़ा?"
“नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हारे यहाँ आने से पहले मैं तुम से मिल नहीं पाया था,” डैडी ने उत्तर दिया।
“अरे डैडी, आप तो बिला वजह फ़िकर करते हैं,” आनन्द ने हँसते हुए कहा। “मैं कोई छोटा सा बच्चा तो हूँ नहीं, और आप इतनी मामूली सी एक बात को लेकर परेशान हो गये हो,” इतना कह कर आनन्द हँस पड़ा।
आनन्द की बात सुनकर अनिल को कुछ अजीब सा लगा। अचानक कोई गुज़री हुई याद ताज़ा हो गई और इससे पहले कि वो आनन्द की बात का जवाब दे, सालों पहले का वह दृश्य उसके सामने जीवंत हो गया।
बात १९८५ की थी। अनिल पंजाब इन्जिनियरिंग कॉलेज चण्डीगढ़ में पढ़ रहा था। अम्बाला नज़दीक होने के कारण अक़्सर वो शुक्रवार की शाम को घर आ जाता था और सोमवार को पहली बस लेकर वापस चण्डीगढ़ लौट जाता था। इस प्रकार उसको पहला पीरियड भी मिस नहीं करना पड़ता था और परिवार के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का मौक़ा भी मिल जाता था।
ऐसे ही एक सुबह अनिल चण्डीगढ़ वापस जाने को तैयार था और बस अड्डे जाने के लिये रिक्शा भी बुला लिया था। माँ तो सामने खड़ी थी मगर पिताजी नज़र नहीं आ रहे थे। अनिल के पूछने पर माँ ने बताया कि वो स्नान कर रहे हैं, बस आते ही होंगे। स्नान के लिए जाने से पहले उन्होंने कहा था कि अनिल से कहना कि मुझसे मिले बिना ना जाये। कहीं बस न निकल जाये, यह सोचकर अनिल बिना उनसे मिले रिक्शे में बैठकर बस अड्डे जा पहुँचा और बस पकड़ चण्डीगढ़ के लिये रवाना हुआ। हॉस्टल पहुँच कर वो तैयार हुआ और कॉलेज चला गया।
लंच ब्रेक में जब अनिल हॉस्टल में अपने कमरे की ओर जा ही रहा था तो रूम बैरा मिठवा राम ने बताया कि बड़े साहब आये हैं और उसने उन्हें कमरे में बिठा दिया है। दरवाज़ा खोल अपने कमरे में जैसे ही अनिल घुसा, उस ने देखा कि सामने पिताजी बैठे हैं।
“अरे पिताजी आप?” अनिल ने चौकन्ना हो कर कहा। “क्या किसी हाई कोर्ट के काम से आना हुआ? घर में तो आपने इस बारे में ज़िक्र भी नहीं किया वरना हम दोनों इकट्ठे आ जाते,” कह कर अनिल ने सवालों की बौछार लगा दी।
“नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल में जब तुम घर से चले थे उस समय मैं तुम से मिल नहीं पाया था, इसीलिये तुम से मिलने आ गया हूँ।” अनिल ने कहा।
“अरे पिताजी, आप भी कैसी बात करते हैं, चण्डीगढ़ और अम्बाले में दूरी ही कितनी है और फिर अगले हफ़्ते तो मैं दीवाली पर घर आ ही रहा हूँ। आप ने एक छोटी सी बात को लेकर इतनी परेशानी क्यों उठाई?” कह कर अनिल हँस पड़ा।
“अनिल बेटे, आज मेरी ये बात और मेरा यहाँ आना तुम्हारी समझ में बिल्कुल नहीं आयेगा। जब तुम स्वयं पिता बनोगे, सब समझ़ जाओगे,” कह कर पिताजी हँस पड़े।
आज अनिल को अपने पिता की वही बात सच होती दिखाई दे रही थी।
इस विशेषांक में
कविता
- तुम्हारा प्यार आशा बर्मन | कविता
- आकांक्षा आशा बर्मन | कविता
- जागृति आशा बर्मन | कविता
- मेरा सर्वस्व आशा बर्मन | कविता
- नित – नव उदित सफ़र डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- इन्द्रधनुषी लहर डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता का दिल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- नया साल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- बसन्त आया था डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- ये पत्ते डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- एक मुट्ठी संस्कृति डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- जीवंत आसमान की धरती का जादू डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- राह डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- मुस्कान डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
- अग्नि के सात फेरे तरुण वासुदेवा | कविता
- माँ और स्वप्न तरुण वासुदेवा | कविता
- ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें निर्मल सिद्धू | कविता
- उम्र के तीन पड़ाव निर्मल सिद्धू | कविता
- वह पूनम कासलीवाल | कविता
- तुम कहाँ खो गए . . . प्राण पूनम कासलीवाल | कविता
- हर बार पूनम कासलीवाल | कविता
- आना-जाना पूनम कासलीवाल | कविता
- पिता हो तुम पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- माँ हिन्दी पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कृष्ण संग खेलें फाग पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- साँवरी घटाएँ पहन कर जब भी आते हैं गिरधर पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
- कटघरा प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- आईना प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- मुलाक़ात प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' | कविता
- पेड़ डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- माँ! मैं तुम सी न हो पाई! डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- चिड़िया का होना ज़रूरी है डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- मूड (Mood) डॉ. शैलजा सक्सेना | कविता
- गुरुदेव सीमा बागला | कविता
- मेरी बिटिया, मेरी मुनिया संदीप कुमार सिंह | कविता
- अधूरी रह गई संदीप कुमार सिंह | कविता
- चंदा, क्या तुम भी एकाकी हो? संदीप कुमार सिंह | कविता
- मैं नदी हूँ सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- लेखनी से संवाद सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कविता
- हमारे पूर्वज सीमा बागला | कविता
- मेरा बचपन वाला ननिहाल सीमा बागला | कविता
- धारा ३७० सीमा बागला | कविता
- परिक्रमा सुरजीत | कविता
- तू मिलना ज़रूर सुरजीत | कविता
- प्रवास कृष्णा वर्मा | कविता
- वायरस डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लाईक ए डायमण्ड इन द स्काई डॉ. निर्मल जसवाल | कविता
- लिफ़ाफ़ा प्राची चतुर्वेदी रंधावा | कविता
- चार्ली हेब्दो को सलाम करते हुए धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- रोबॉट धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- मेरे टेलीस्कोप में धरती नहीं है धर्मपाल महेंद्र जैन | कविता
- निज भाग्य विधाता परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- आ गया बसंत है परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव | कविता
- कुछ कहा मधु भार्गव | कविता
- मेरी माया मधु भार्गव | कविता
- मधु स्मृति स्नेह सिंघवी | कविता
- अश्रु स्नेह सिंघवी | कविता
- निमंत्रण स्नेह सिंघवी | कविता
- मैं हवा हूँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- मेरी पहचान इन्दिरा वर्मा | कविता
- चिट्ठियाँ इन्दिरा वर्मा | कविता
- वह कोने वाला मकान इन्दिरा वर्मा | कविता
- एक दिया जलाया इन्दिरा वर्मा | कविता
- आशीर्वाद इन्दिरा वर्मा | कविता
- बंधन कृष्णा वर्मा | कविता
- सोंधी स्मृतियाँ कृष्णा वर्मा | कविता
- स्त्री कृष्णा वर्मा | कविता
- रेत कृष्णा वर्मा | कविता
- ज़िन्दगी का साथ दीप्ति अचला कुमार | कविता
- छोटे–बड़े सुख दीप्ति अचला कुमार | कविता
- सिमटने के दिन दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दुविधा दीप्ति अचला कुमार | कविता
- दिशाभ्रम आशा बर्मन | कविता
- मैं और मेरी कविता आशा बर्मन | कविता
- अपेक्षायें आशा बर्मन | कविता
- प्रश्न आशा बर्मन | कविता
- सन्नाटे अम्बिका शर्मा | कविता
- रोज़ सुबह अम्बिका शर्मा | कविता
- इत्मीनान अम्बिका शर्मा | कविता
- मन की आँखें आशा बर्मन | कविता
पुस्तक समीक्षा
- सहज स्नेह पगी – 'कही-अनकही' डॉ. शैलजा सक्सेना | पुस्तक समीक्षा
- भक्ति, वैराग्य तथा आध्यात्मिक भावों की निश्छल अभिव्यक्ति: ’निर्वेद आशा बर्मन | पुस्तक समीक्षा
- प्रवासी कथाकार शृंखला – शैलजा सक्सेना : समीक्षा प्रो. अमिता तिवारी | पुस्तक समीक्षा
- सम्भावनाओं की धरती: कैनेडा गद्य संकलन डॉ. अरुणा अजितसरिया | पुस्तक समीक्षा
- युगीन यातनाओं को रेखांकित करती कविताएँ डॉ. मनोहर अभय | पुस्तक समीक्षा
- विश्वास की रौशनी से भरी कविताएँ: 'क्या तुम को भी ऐसा लगा?' डॉ. रेखा सेठी | पुस्तक समीक्षा
पत्र
कहानी
- भड़ास सतीश सेठी | कहानी
- सूखे पत्ते सतीश सेठी | कहानी
- उसने सच कहा था सुमन कुमार घई | कहानी
- स्वीकृति मानोशी चैटर्जी | कहानी
- दो बिस्तर अस्पताल में डॉ. शैलजा सक्सेना | कहानी
- एक और विदाई सविता अग्रवाल ‘सवि’ | कहानी
- वसंत रुत डॉ. निर्मल जसवाल | कहानी
- एक खेल अटकलों का डॉ. हंसा दीप | कहानी
- अक्स डॉ. हंसा दीप | कहानी
- विशाखा कृष्णा वर्मा | कहानी
- बेटे का सुख विजय विक्रान्त | कहानी
- पगड़ी सुमन कुमार घई | कहानी
साहित्यिक आलेख
- समाजों का कैनवास–सम्भावनाओं की धरती अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा के हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले साहित्यकार डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की राजधानी ओटवा में हिंदी साहित्य की भूमिका डॉ. जगमोहन हूमर | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा में हिंदी-शिक्षण परंपरा में स्थानीय संस्थाओं की भूमिका डॉ. दीपक पाण्डेय | साहित्यिक आलेख
- कैनेडा की विपुल और समृद्ध कविता धारा का परिचय कराता काव्य संकलन–सपनों का आकाश अनिल जोशी | साहित्यिक आलेख
- अचला दीप्ति कुमार, व्यक्तित्व तथा कृतित्व आशा बर्मन | साहित्यिक आलेख
- कृष्णा वर्मा के सृजन-कर्म से गुज़रते हुए डॉ. पूर्वा शर्मा | साहित्यिक आलेख
- राग-विराग के समभाव की कवयित्री: इंदिरा वर्मा! डॉ. सुमन सिंह | साहित्यिक आलेख
रचना समीक्षा
लघुकथा
कविता - हाइकु
स्मृति लेख
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कहानी
चिन्तन
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
बात-चीत
- डॉ. नूतन पाण्डेय द्वारा टोरोंटो, कैनेडा निवासी डॉ. शैलजा सक्सेना से बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा की हिंदी कथाकार हंसा दीप से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- डॉ. दीपक पाण्डेय द्वारा कैनेडा निवासी डॉ. स्नेह ठाकुर से साक्षात्कार डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी राधेश्याम त्रिपाठी से डॉ. नूतन पाण्डेय की बातचीत डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी डॉ. रत्नाकर नराले से डॉ. नूतन पाण्डेय का संवाद डॉ. नूतन पांडेय | बात-चीत
- कैनेडा निवासी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन से डॉ. दीपक पाण्डेय का संवाद डॉ. दीपक पाण्डेय | बात-चीत