भड़ास
कहानी | सतीश सेठीअपने देश की सेवा में अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले जाँबाज़ जगरूप सहगल को बचपन से ही जासूसी कहानियाँ पढ़ने का बड़ा शौक़ था। बड़ा हुआ तो उसे भारतीय सेना में जाने का अवसर मिल गया। जगरूप अब किसी बड़े ओहदे पर पहुँच चुका था और उसकी शादी बहुत सौम्य लड़की से हो चुकी थी। एक सुन्दर पुत्री फिर एक सुन्दर पुत्र का जन्म हुआ।
जगरूप को जासूस के रूप में कार्य करने का भी अवसर मिल गया जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसे पड़ोसी देश में भेजा गया जहाँ उसने कुछ वर्षों तक काम किया परन्तु अचानक उसकी कोई ख़बर आनी बन्द हो गयी। शायद वो पकड़ा गया और उसे लापता घोषित कर दिया गया।
चन्द्रमुखी, एक जवाँ पत्नी और ऊपर से दो छोटे बच्चे फिर कोई आमदनी का साधन नहीं। मजबूर हो चन्द्रमुखी ने बैठक किराए पे चढ़ा दी जिससे कुछ सहायता मिली। बच्चे बड़े हो रहे थे और ख़र्चे बढ़ रहे थे। जगरूप के भाई कोई मदद नहीं कर रहे थे। बूढ़ी सास मजबूर थी और अपने दूसरे बेटे पर निर्भर थी और उसी के साथ रहती थी। समाज भी कैसा है कोई मदद करना तो दूर की बात है बल्कि एक अकेली औरत का जीना भी मुश्किल कर देता है। चंद्रमुखी जब अकेली मुहल्ले में से गुज़रती कुछ लोग उसपे भद्दे व्यंग्य कसते। सुमन बेटी भी जवाँ हो रही थी और बेटा अमित भी बड़ा हो रहा था। परिवार का जीवन बड़ी कठिनाइयों से बीत रहा था।
वर्षों बीत गए मगर जगरूप सहगल का कोई सुराग़ कोई ख़बर नहीं आयी। उसके ज़िन्दा होने की उम्मीद भी चंद्रमुखी के मन से छूटी जा रही थी। चन्द्रमुखी की सास अपनी पुत्रवधू, पोती और पोते की चिन्ता करती रहती थी। सास को चिन्ता खाए जा रही थी कि उसके जाने के बाद परिवार का क्या होगा। चंद्रमुखी बेबस विधवा जैसा जीवन बिता रही थी। सास ने चन्द्रमुखी को दोबारा शादी कर लेने की सलाह दी। मुहल्ले में एक युवक जिसने अभी तक शादी नहीं की थी और अधेड़ आयु तक पहुँच चुका था, अच्छी सरकारी नौकरी थी और चन्द्रमुखी से शादी करने को राज़ी हो गया। चन्द्रमुखी ने अपनी एक सहेली से बात की जो उसके मायके से ही थी और उसी मुहल्ले में रहती थी। सहेली ने भी दोबारा शादी की सलाह दी।
चन्द्रमुखी की दोबारा शादी हो गयी और जीना कुछ आसान हो गया। बेटी और बेटे की पढ़ाई ठीक चलने लगी। अचानक एक दिन ऐसी ख़बर आयी जिसे सुन कर चन्द्रमुखी के पाओं के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। जगरूप ज़िन्दा था और पड़ोसी देश की क़ैद में था। उसे युद्धबन्दी के रूप में पकड़ा गया था। उसे कितनी ही अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं और बहुत ही दयनीय अवस्था में उसे सरकार के हवाले किया गया था। जगरूप को हस्पताल में काफ़ी देर तक रखा गया और स्वस्थ होने पर उसे अपने घर आने की इच्छा हुई।
जगरूप की माँ अपने बेटे के ज़िन्दा होने की ख़बर से ख़ुश थी परन्तु चन्द्रमुखी की दोबारा शादी करवाने का अपराध बोध मन को दुखी कर रहा था। स्थानीय नेता अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए जगरूप को फूलों के हार पहना कर घर ला रहे थे। बेटे का इन्तज़ार माँ द्वार पर ही कर रही थी। जगरूप को बाजे-गाजे के साथ घर लाया गया। माँ के पाँव छूकर जगरूप घर के अन्दर पहुँचा। अपनी पत्नी और बच्चों को न देख जगरूप के मन में कई सवाल उठ रहे थे।
जगरूप ने माँ से पूछा चन्द्रमुखी, सुमन और अमित अभी तक मिलने क्यों नहीं आये? माँ को सुझाई नहीं दे रहा था अपने पुत्र को कैसे कड़वी सच्चाई बताए की जगरूप की दुनियाँ उजड़ चुकी है। उसकी पत्नी उसकी नहीं रही किसी और की हो चुकी और बच्चे उसे पहचान भी नहीं सकते।
आख़िर कब तक छुपी रहती सच्चाई। कड़वा सच जब जगरूप के सामने आया मानो उसकी दुनियाँ पे असमां से बिजली गिरी और उसकी आँखों के सामने उसकी दुनियाँ नष्ट हो गयी।
जगरूप के दिल में ख़्याल आया कि बेहतर होता वो देश की सेवा करता वीरगति को ही प्राप्त हो गया होता। क़िस्मत का खेल है किसी का कोई दोष नहीं। पत्नी करती भी तो क्या और माँ की मजबूरी जो अपनी पुत्रवधू का भला ही चाहती थी। अनेक प्रश्न अनेक पुरानी यादों से घिरा रहता जगरूप। कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि अब कहाँ जाए कैसे जिए या ना ही जिए।
शहर से बाहर नदी के पास दोपहर को पेड़ के नीचे जगरूप अक़्सर आ बैठता जब भी कभी उदास होता था और घण्टों तक चलते पानी को निहारता पक्षियों को पेड़ पे बैठे निहारता रहता। मन जब शान्त हो जाता तो घर लौट आता था।
मन इतना विचलित था और जीने का मक़सद जैसे कोई रहा न हो। मन शान्त करने के लिए जगरूप नदी के किनारे पेड़ के नीचे हरी घास पे जा लेटा और आँखें बन्द कर लीं। दुश्मन की क़ैद में सहन अमानवीय अत्याचार याद आते और कभी हिम्मत ना हारी तो कभी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बिताए हसीन दिनों की याद आती। आज उसे नदी के पास टहलते रात हो गयी और उसकी निगाहें तारों से झिलमिलाते आसमान पे पड़ीं। एक तारा आसमान से टूट कर गिरा और अपनी आख़री चमक दिखा के सदा के लिये बुझ जाता है। मगर सितारों भरे गगन के दृष्य में कोई अन्तर नहीं लगता था एक सितारा गिरा मगर विशाल गगन टिमटिमाते सितारों से वैसे का वैसा भरा नज़र आ रहा था। जगरूप की सोच एकदम से बदल गयी। उसका परिवार अब उसका नहीं रहा तो क्या जीवन में और भी अनगिनत सम्भावनाएँ हैं गगन के सितारों की तरह। फिर से बसाएगा एक नयी दुनियाँ और अपनी ज़िन्दगी जिएगा भी और इसे ख़ूबसूरत भी बनाएगा। योद्धा सिपाही या वीरगति को प्राप्त होता है या विजय प्राप्त करता है। पत्नी और बच्चों की नयी दुनियाँ से दूर कहीं अपनी नयी दुनियाँ बसाने का दृढ़ निश्चय कर लिया जगरूप सहगल ने और चल दिया वापिस घर माँ के पास।
फ़ौजी किसी भी देश का हो, अपना धर्म निभाए जब सरहद पे देश की ख़ातिर लड़ते-लड़ते शहीद हो जाए या बन्दी बना लिया जाये। मगर जब पकड़ा जाए तो सारी भड़ास बेचारे फ़ौजी पे निकाल देते हैं दूसरे देश में। जो कहीं क़िस्मत से बच के वापिस अपने देश पहुँच जायें तो कभी क़िस्मत भी अपनी सारी भड़ास निकाल दे। जगरूप ने फ़ैसला किया कि वो हालात के आगे घुटने नहीं टेकेगा क़िस्मत को भड़ास नहीं निकालने देगा।
जगरूप को दिल्ली में एक अच्छी नौकरी मिल गयी। वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता और जगरूप भी वक़्त के साथ चलता रहा। एक शाम खाना खाने किसी बड़े रेस्तराँ में जगरूप टेबल पर अकेला बैठा था। तभी उसकी निगाह दूर एक टेबल पर बैठी एक सुन्दर महिला पे जा टिकी। उसे वो चेहरा जाना-पहचाना लग रहा था। इत्तिफ़ाक़ से उस महिला की नज़र भी उसपे पड़ी और वो भाँप गयी कि कोई उसी की तरफ़ देख रहा है और उसका चेहरा जाना-पहचाना लग रहा है। जगरूप से रहा न गया उस ओर आकर्षण इतना कि उठ के उसी टेबल के पास जा पहुँचा।
वर्षों बाद एक दूसरे को देख अचंभित और ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा।
“आप जगरूप सहगल हैं?” शहद घोलती सी आवाज़ जगरूप के कानों में पड़ी।
“हाँ और आप सिमरन खन्ना?” एक साथ हाँ कहा जगरूप ने और सिमरन ने। सिमरन भी अकेली थी और जगरूप ने उसे अपनी टेबल पर खाने के लिए आने को कहा जिसे सिमरन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
पुराने दिनों में सिमरन और जगरूप बचपन में स्कूल से कॉलेज तक इकट्ठे पढ़े थे। सिमरन सबसे हसीन और जगरूप भी बहुत सुन्दर नौजवान थे कॉलेज के ज़माने में। उनकी अच्छी दोस्ती भी थी। लेकिन सिमरन शादी के बाद विदेश लंदन में जा बसी थी। बड़ी देर बाद अपने देश भारत अपने परिवार व रिश्तेदारों से मिलने आयी थी। क़िस्मत ने उसे वर्षों बाद जगरूप से मिला दिया।
जगरूप और सिमरन रेस्तराँ में कितनी देर तक बैठे रहे और पुरानी कॉलेज के ज़माने की बहुत सी बातें याद कर दोनोंं ज़ोर से हँसते रहे। सिमरन ने जगरूप से उसकी बीवी बच्चों के बारे पूछा और उसके कॉलेज के बाद की ज़िन्दगी के बारे पूछा। जगरूप ने अपनी फ़ौज की नौकरी से जंगी क़ैदी फिर घर वापिस आने पे जो हुआ वो सब बताया। सिमरन ने भी बताया की उसकी बेटी बड़ी और बेटा छोटा है जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। पति एक क़ामयाब व्यवसाय के मालिक जिनका एक कार हादसे में देहान्त हो चुका था।
दोनोंं अपना दुःख एक दूसरे को सुना मन हल्का कर रहे थे। वक़्त का पता ही न चला कब रात हो गयी। जगरूप और सिमरन ने टैक्सी की और सिमरन को उसके घर छोड़ फिर मिलने का वादा कर जगरूप घर चला गया।
सिमरन और जगरूप रोज़ मिलते और सिमरन का लंदन वापिस लौटने का समय नज़दीक आ गया। एक शाम सिमरन ने साहस जुटा कर जगरूप से प्रश्न पूछ ही लिया कि उसने बाक़ी ज़िन्दगी के बारे क्या सोचा है? जगरूप अभी पूरी तरह से अपने साथ हुए हादसे को भूल नहीं पाया था। सिमरन ने जगरूप से एक सवाल पूछा कि उसके साथ जो हुआ उस में क़सूरवार कौन है? जगरूप सोचने लगा, बात तो ठीक कह रही है सिमरन। चन्द्रमुखी ने बेवफ़ाई तो नहीं की मजबूर हो कर शादी करनी पड़ी। बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी, अकेली औरत देख रोज़ भद्दे मज़ाक़ सहना, समाज में अकेली औरत कैसे रोज़ अकेली जीवन की कठिनाइयों से गुज़रती है और फिर सभी ने चन्द्रमुखी को दूसरी शादी की सलाह दी। उसे ख़ुद भी दोबारा जीवनदान मिला जो भगवान से मिला उपहार है। चन्द्रमुखी की तरह सिमरन भी तो दो बच्चों की परवरिश अकेली कर रही है। उसे आभास हुआ जैसे सिमरन सोच रही हो काश जगरूप उसे अपना हमसफ़र बनाने का प्रस्ताव रखेगा।
सिमरन के वापिस लंदन लौटने में अब कुछ दिन ही रह गए थे। एक शाम जगरूप ने उसे रेस्तराँ में बुलाया और खाना खाने के बाद हिम्मत जुटा कर सिमरन से शादी का प्रस्ताव रखा। सिमरन को बेहद ख़ुशी हुई और तुरन्त प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। जगरूप शादी के बाद लंदन चला गया और वहीं बस गया।
समय मानों पंख लगा के उड़ गया और सिमरन के बेटे कर्ण खन्ना एक क़ामयाब व्यवसायक बने और बेटी लंदन की प्रसिद्ध डॉक्टर बन गयी। चन्द्रमुखी का बेटा अमित एक क़ामयाब डॉक्टर बन गया और बेटी भी प्रसिद्ध डॉक्टर बन गयी। चारों तरफ़ ख़ुशी ही ख़ुशी।
जगरूप सोच रहा था अगर वो हादसे से उबर ना पाता तो इतनी ख़ूबसूरत ज़िन्दगी से वंचित रह जाता। उसने क़िस्मत को अपने ऊपर भड़ास नहीं निकालने दी बल्कि लड़ा एक फ़ौजी की तरह और जीत गया। जब भी कोई मित्र उसे पूछता कि अपने देश कभी क्यूँ नहीं जाते? माँ–बाप तो अरसे से दुनियाँ से जा चुके थे और कोई भी कारण नहीं था वापिस जाने का मगर मातृभूमि तो सबको सदा याद आती। जब कभी बचपन में बिताए दिन याद आते तो अपना वतन बहुत ही याद आता और उसे एक कवि की कविता याद आ जाती जो उसने एक कवि सभा में सुनी थी।
अपना घर बार पीछे छोड़ कर
बहुत दूर कहीं विदेश में कोई
बस यूँ ही तो नहीं चला जाता
चारों तरफ़ आग लगी हो जब
आग का धुआँ चारों ओर-तब
साँस भी तो लिया नहीं जाता
पनाह मिल जाए पराए देश में अगर
अपना ना हो के भी अपनाया जिसने
ऐसे देश को कभी भी विदेश-अब
हम से तो कभी भी कहा नहीं जाता
अरसे से आ बसे देश से बहुत दूर
यूँ तो अब नया देश लगता है अपना
जहाँ पले बढ़े वो तो जन्मभूमि है-कभी
अपना देश भुलाया भी तो नहीं जाता
बीते वक़्त में यादें बसें, जीवन नहीं
भविष्य में कल्पनायें ही बस सकेंगी
जीवन जीना तो आज में ही है सम्भव
भूतकाल में रहने से जिया नहीं जाता
बेहतर है आज में रहो ख़ुशी ख़ुशी
भविष्य जानना तो सम्भव ही नहीं
कल में कभी भी जिया नहीं जाता
इस विशेषांक में
कविता
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- आकांक्षा आशा बर्मन | कविता
- जागृति आशा बर्मन | कविता
- मेरा सर्वस्व आशा बर्मन | कविता
- नित – नव उदित सफ़र डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- इन्द्रधनुषी लहर डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता का दिल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- पिता डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
- नया साल डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
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- जीवंत आसमान की धरती का जादू डॉ. रेणुका शर्मा | कविता
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- मुस्कान डॉ. अंकिता बर्मन | कविता
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- ये पैग़ाम देती रहेंगी हवायें निर्मल सिद्धू | कविता
- उम्र के तीन पड़ाव निर्मल सिद्धू | कविता
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- कैकयी तुम कुमाता नहीं हो पूनम चन्द्रा ’मनु’ | कविता
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